कदम उठते है तेरी ओर, और फिर थम जाते है
काबिल ना तेरे है हम, ये खुद को हम समझाते है
आइना चाँद है तेरा, तू बेवक़त झलकता इसमें
दीद को तेरी ऐसे यूँ रात गुजर जाते है
प्रहर शाम की कटती लेकिन सुबह तो बेअसर नजर आते है
टूटता हूँ की बिलखता मै हूँ, खवाइश चंद अज़रार सिमट जाते है
अश्क़ में भी तराशु तुझको, बेवजह उम्मीदे कतल हो गए
चाहतो का पता ना मिला और फासले ही फसल हो गए
वक़त के भी साये पराये होने लगे
यूँ जिन्दा रह कर जिन्दा दफ़न हो गए .....
काबिल ना तेरे है हम, ये खुद को हम समझाते है
आइना चाँद है तेरा, तू बेवक़त झलकता इसमें
दीद को तेरी ऐसे यूँ रात गुजर जाते है
प्रहर शाम की कटती लेकिन सुबह तो बेअसर नजर आते है
टूटता हूँ की बिलखता मै हूँ, खवाइश चंद अज़रार सिमट जाते है
अश्क़ में भी तराशु तुझको, बेवजह उम्मीदे कतल हो गए
चाहतो का पता ना मिला और फासले ही फसल हो गए
वक़त के भी साये पराये होने लगे
यूँ जिन्दा रह कर जिन्दा दफ़न हो गए .....
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