असहयोग आंदोलन के दौरान 1921 में मनोरंजन प्रसाद सिन्हा द्वारा रचित भोजपुरी कविता फिरंगिया। भारत में प्रतिबंध लगने की वजह से यह कवित मारीशस देश में प्रकाशित हुई और वहाँ से इसका प्रचार भारत में भी हुआ। सुन्दर सुघर भूमि भारत के रहे रामा आज इहे भइल मसान रे फिरंगिया अन्न धन जल बल बुद्धि सब नास भइल कौनों के ना रहल निसान रे फिरंगिया जहॅवाँ थोड़े ही दिन पहिले ही होत रहे लाखों मन गल्ला और धान रे फिरंगिया उहें आज हाय रामा मथवा पर हाथ धरि बिलखि के रोवेला किसान रे फिरंगिया सात सौ लाख लोग दू-दू साँझ भूखे रहे हरदम पड़ेला अकाल रे फिरंगिया जेहु कुछु बॉचेला त ओकरो के लादि लादि ले जाला समुन्दर के पार रे फिरंगिया घरे लोग भूखे मरे, गेहुँआ बिदेस जाय कइसन बाटे जग के व्यवहार रे फिरंगिया जहॅवा के लोग सब खात ना अधात रहे रूपयासे रहे मालामाल रे फिरंगिया उहें आज जेने-जेने आँखिया घुमाके देखु तेने-तेने देखबे कंगाल रे फिरंगिया बनिज-बेपार सब एकहू रहल नाहीं सब कर होइ गइल नास रे फिरंगिया तनि-तनि बात लागि हमनी का हाय रामा जोहिले बिदेसिया के आसरे फिरंगिया कपड़ों जे आवेला बिदेश से त हमनी का पेन्ह के रखि...
बूँद a drop/ Boond a drop success is unpredictable but struggle is always defined by you.