घर की आर्थिक तंगी से जूझते हुए आख़िरकार हरिया ने दुबई जाने का निर्णय ले ही लिया। महीने भर की दिहाड़ी मजदूरी से एक वक़त का खाना खाकर कुछ 3000 रु जमा किये। फिर कुछ हिम्मत करके गाँव जाकर रामदीन काका से मिला, जिनका लड़का चंद साल पहले दुबई गया था काम करने। रामदीन ने उसे दुबई जाने की सभी आवश्यक जानकारी दी। पासपोर्ट, वीसा और प्लेन का टिकट कुल मिलकर कुछ 35000 रु हुए। 35000 की बात सुनकर हरिया विडम्बना में घर लौट आया। 12 महीने की कड़ी मेहनत के बाद कुछ 36000 रु जमा कर विदेश जाने का मान बनाया ही था की अचानक पिता की तबियत बिगड़ गयी। गाँव जाकर कई महीनो तक पिता का इलाज करते करते कुछ 10000 रु कर्च हो गए। कभी कभार विदेश ना जाने का गम होता। पर स्वस्थ पिता के मुस्कुराते चहरे को देखकर वो गम भी दूर हो जाता। पिता की हालत ठीक हो जाने के बाद मुरारी सेठ से 10 टका ब्याज पर कुछ 12000 रु लिए, ये सोंच कर की विदेश से कमाई करके सब चुकता कर देगा। हिम्मत करके हरिया ने पासपोर्ट कार्यालय में अर्जी दे दी। पहचान पत्र के नाम पर बस एक रासन कार्ड था जिसे पासपोर्ट ऑफिस ने ख़ारिज कर दिया और पासपोर्ट के लिए आवश्यक जाच पत्...
बूँद a drop/ Boond a drop success is unpredictable but struggle is always defined by you.