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Showing posts with the label Hindu Mythology

ज्योतिर्लिंग

  ज्योतिर्लिंग  ज्योतिर्लिंग= ज्योति + लिंग (अर्थात ज्योति या प्रकाश का प्रतीक)   कैसे हुयी इन ज्योति के प्रतीको की उत्पत्ति?  एक बार भगवान ब्रह्म और भगवान विष्णु में इस बात को लेकर विवाद हुआ कि उन दोनों में श्रेष्ठ कौन है, तब दोनों भगवान के भ्रम को समाप्त करने के लिए भगवान शिव एक महान ज्योति स्तंभ के रूप में प्रकट हुए, ब्रम्हा जी और विष्णु जी दोनो ही उस स्तंभ के आरंभ और अंत नहीं जान सके। इसी को ज्योतिर्लिंग कहते है। उस वक़्त धरती पर कई ज्योतिर्लिंग प्रकट हुए थे। उनमें से प्रमुख 12 ज्योतिर्लिंग है। इन 12 स्थानों पर भगवान शिव स्वयं प्रकट हुए थे। बाद में शिव भक्तों ने इन स्थानों पर शिवलिंग स्थापित कर, भगवान शिव का भव्य मन्दिर निर्मित कराया। इन सभी ज्योतिर्लिंगों में सिर्फ महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग ही दक्षिणीमुखी है, बाकि सारे ज्योतिर्लिंग का मुख पूर्व दिशा की ओर है।    1. सोमनाथ- दक्ष के श्राप से ग्रसित चंद्रदेव ने इस स्थान पर भगवान शिव को प्रसन्न किया था। बाद में इस जगह पर चंद्रदेव ने मन्दिर का निर्माण करवाया था, जिस वजह से इसे चंद्र के नाथ अर्थात सोमनाथ के न...

मथुरा

  मथुरा भगवान श्री कृष्ण की नगरी है। यही पर भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ तथा भगवान श्री कृष्ण का बचपन यहाँ गाय चराते हुए, बंजारों की तरह बिता।  जन्म- कंस के कारावास में, जिसे आज कृष्ण जन्म स्थान के नाम से जानते हैं। मुगल शासन के दौरान, औरंगजेब ने अपने शासन में कृष्ण जन्म स्थान पर शाही ईदगाह मस्जिद का निर्माण करवाया था।  गोकुल- यहाँ पर भगवान श्री कृष्ण 3 बरस की आयु तक रहे तथा पूतना का वध किया।  वृन्दावन- जब गोकुल में बाल कृष्ण पर कई राक्षसों के हमले हुए, तब नन्द महराज गोकुल छोड़ कर वृन्दावन में बस गये। यहाँ पर भगवान श्री कृष्ण 3  से 6 बरस की आयु तक रहे। यही पर भगवान श्री कृष्ण ने कालिया नाग को हराया।  वृन्दावन के क्षेत्र में ही भगवान श्री कृष्ण ने गोपीयो के साथ रासलीला रचाया था।  निधिवन(वृन्दावन)- निधिवन वृन्दावन क्षेत्र में तुलसी के पेड़ो का वन है। इन तुलसी के पेड़ो को भगवान श्री कृष्ण, राधा रानी और गोपीयो का रूप माना जाता है। और ये भी मान्यता है कि आज भी हर रात भगवान श्री कृष्ण, राधा तथा गोपीयो के साथ यहाँ पर रासलीला रचाते है।  प्रेम मन्दिर(व...

मोहिनी एकादशी

  मोहिनी एकादशी हिंदू धर्म में एकादशी तिथि भगवान विष्णु की प्रिय तिथि होने के कारण एकादशी का विशेष महत्व होता है। एक महीने में 2 और एक साल में कुल 24 एकादशी तिथियां पड़ती है‌। वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोहिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवाव विष्णु ने मोहिनी रुप धारण करके असुरों का नाश किया था।  समुद्र मंथन के दौरान जब विष और अमृत दोनों निकला, तब भगवान शिव ने विष का पान करके देवताओं और समस्त श्रृष्टि की रक्षा की।  और भगवान विष्णु ने मोहिनी रुप धारण कर अमृत को असुरों से बचाया। मोहिनी के रूप में भगवान ने असुरों को अपने जाल में फंसाकर, देवताओं को अमृतपान कराया। इसलिए इस एकादशी को मोहिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है।   मोहिनी एकादशी व्रत कथा पुराने समय में भद्रावती नगर में एक धनी व्यक्ति रहता था। उसका नाम धनपाल था। धनपाल स्वभाव से दानी किस्म का व्यक्ति था और काफी दान-पुण्य करता था‌। धनपाल के पांच बेटे थे, लेकिन उसका सबसे छोटा बेटा धृष्टबुद्धि हमेशा बुरे कर्मों में लिप्त रहता था। धृष्टबुद्धि की आदतों से परेशान होकर पिता धनपाल ने ...

बजरंग बाण

हनुमान चालीसा तथा बजरंग बाण की रचना तुलसीदास ने की थी।  हनुमान चालीसा- हनुमान जी का श्रीराम के प्रति समर्पण + भक्त की प्राथना  बजरंग बाण- हनुमान जी द्वारा लंका में कृत कार्य + बीज मंत्र + भक्त की प्राथना   ॥दोहा॥ निश्चय प्रेम प्रतीति ते, बिनय करैं सनमान। तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान॥ ॥चौपाई॥ जय हनुमंत संत हितकारी। सुन लीजै प्रभु अरज हमारी॥ 1 जन के काज बिलंब न कीजै। आतुर दौरि महा सुख दीजै॥ जैसे कूदि सिंधु महिपारा। सुरसा बदन पैठि बिस्तारा॥ आगे जाय लंकिनी रोका। मारेहु लात गई सुरलोका॥ जाय बिभीषन को सुख दीन्हा। सीता निरखि परमपद लीन्हा॥ बाग उजारि सिंधु महँ बोरा। अति आतुर जमकातर तोरा॥ अक्षय कुमार मारि संहारा। लूम लपेटि लंक को जारा॥ लाह समान लंक जरि गई। जय जय धुनि सुरपुर नभ भई॥ अब बिलंब केहि कारन स्वामी। कृपा करहु उर अंतरयामी॥ जय जय लखन प्रान के दाता। आतुर ह्वै दुख करहु निपाता॥ जै हनुमान जयति बल-सागर। सुर-समूह-समरथ भट-नागर॥ ॐ हनु हनु हनु हनुमंत हठीले। बैरिहि मारु बज्र की कीले॥ ॐ ह्नीं ह्नीं ह्नीं हनुमंत कपीसा। ॐ हुं हुं हुं हनु अरि उर सीसा॥ जय अंजनि कुमार बलवंता...

मोक्षदा एकादशी

  जिन आत्माओं को भगवान विष्णु के निवास स्थान बैकुण्ड धाम में जगह मिलती है उन्हें मोक्ष मिल जाता है।  मार्गशीर्ष मास के शुक्लपक्ष की एकादशी को मोक्षदा एकादशी कहा जाता है। इसी दिन श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था, जिस वजह से इसे  गीता जयंती के नाम से भी जानते है।  ये एकादशी धनुर्मास एकादशी के नाम से भी जानी जाती है। धनुर्मास- वह सूर्यमास जब सूर्य धनु राशि में प्रवेश करता है।   मोक्षदा एकादशी व्रत कथा  चंपा नगरी में राजा वैखानस का राज था। नगर की जनता राजा से बहुत खुश थी। राजा अपनी जनता है पूरा ख्याल रखते थे। एक रात राजा ने सपने में देखा की उनके पूर्वज नरक की प्रताड़ना झेल रहे हैं। पितरों की यह स्थिति देखकर राजा बहुत दुखी हुए। सुबह होते ही उन्होंने राज्य के पुरोहित को बुलाकर पूर्वजों की मुक्ति का उपाय पूछा, तब ब्राह्मणों ने कहा कि इस समस्या का हल पर्वत ऋषि ही बता सकते हैं।  राजा वैखानस ब्राह्मणों की बात सुनते ही पर्वत ऋषि के आश्रम पहुंचे और नरक भोग रहे पितरों की मुक्ति का मार्ग जानने का आग्रह किया। ऋषि पर्वत ने बताया कि उनके पूर्वज ने अपने...

हिन्दू पञ्चाङ्ग

 हिन्दू पञ्चाङ्ग हिन्दू पञ्चाङ्ग में महीनों की गणना चंद्रमा की गति के अनुसार की जाती है। पूर्णिमा के दिन, चंद्रमा जिस नक्षत्र में होता है उसी आधार पर महीनों का नामकरण हुआ है। हिन्दू पञ्चाङ्ग में 30-30 दिनों के 12 मास होते है। हिन्दू पञ्चाङ्ग के 12 मास- 1.  चैत्र(मार्च-अप्रैल), 2.  वैशाख, 3. ज्येष्ठ, 4. आषाढ़, 5. श्रावण, 6. भाद्रपद, 7. आश्विन, 8. कार्तिक, 9. मार्गशीर्ष, 10. पौष, 11. माघ, 12. फाल्गुन चन्द्रमा की कलाओं के ज्यादा या कम होने के अनुसार ही महीने को दो पक्षों में बांटा गया है- (15 दिन)कृष्ण पक्ष और (15 दिन)शुक्ल पक्ष। पूर्णिमा से अमावस्या तक बीच के दिनों को कृष्णपक्ष कहा जाता है तथा अमावस्या से पूर्णिमा तक का समय शुक्लपक्ष कहलाता है। दोनों पक्षो की पौराणिक कथाएं- 1. कृष्णपक्ष(मास का प्रथम 15 दिन ) दक्ष प्रजापति ने अपनी सत्ताईस बेटियों का विवाह चंद्रमा से कर दिया। ये सत्ताईस बेटियां सत्ताईस नक्षत्र हैं। लेकिन चंद्र केवल रोहिणी से प्यार करते थे। ऐसे में बाकी पुत्रियों ने अपने पिता से शिकायत की कि चंद्र उनके साथ पति का कर्तव्य नहीं निभाते। दक्ष प्रजापति के डांटन...

उत्पन्ना एकादशी

  उत्पन्ना एकादशी तिथि- मार्गशीर्ष मास, कृष्ण पक्ष, एकादशी   सतयुग में मुर नामक एक बलशाली राक्षस था। जिसने अपने पराक्रम से स्वर्ग तक को जीत लिया था। उसके पराक्रम के आगे इन्द्र देव, वायु देव और अग्नि देव भी नहीं टिक पाए। अतः उन सभी को स्वर्ग लोक छोड़ना पड़ा। निराश होकर देवराज इन्द्र कैलाश पर्वत पर जाकर भगवान शिव के समक्ष अपना दु:ख बताया। इन्द्र की प्रार्थना सुनकर भगवान शिव ने उन्हें भगवान विष्णु के पास जाने के लिए कहा। इसके बाद सभी देवगण क्षीरसागर पहुँचकर भगवान विष्णु से राक्षस मुर से अपनी रक्षा की प्रार्थना करते हैं। भगवान विष्णु सभी देवताओं को रक्षा का आश्वासन देते हैं।   इसके बाद भगवान विष्णु राक्षस मुर से युद्ध करने चले जाते हैं। कई सालों तक भगवान विष्णु और राक्षस मुर में युद्ध चलता है। लम्बे समय तक युद्ध लड़ने के कारण थकान से भगवान विष्णु को नींद आने लगती है और वो विश्राम करने के लिए एक गुफा में जाकर वहाँ सो जाते हैं। भगवान विष्णु के पीछे मुर दैत्य भी उस गुफा में पहुंच जाता है। भगवान विष्णु को सोता देख, राक्षस मुर उन पर आक्रमण कर देता है। उसी समय भगवान विष्णु क...

बैकुंठ चतुर्दशी

  बैकुंठ चतुर्दशी - जब नारद ऋषि के आग्रह पर भगवान विष्णु ने बैकुंठ का द्वार एक दिन(कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी) के लिए आम जन मानस के लिए खोल दिया।  आज के दिन भगवान भगवान विष्णु और भगवान् शिव की पूजा एक साथ होती है।   चातुर्मास में भगवान विष्णु के योगनिद्रा में होने के कारण सृष्टि का कार्यभार भगवान शिव के पास होता है। इसके बाद देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु निद्रा से जागते हैं। तब चतुर्दशी के दिन बैकुंठ के द्वार खुलते हैं और भगवान शिव चतुर्दशी के दिन सृष्टि का कार्यभार पुन: विष्णुजी को सौंपने बैकुंठ जाते हैं।  इसलिए बैकुंठ चतुर्दशी के दिन भगवान शिव और भगवान विष्णु की पूजा एक साथ होती है।  बैकुंठ चतुर्दशी के ही दिन भगवान विष्णु ने भगवान शिव को 1000 कमल अर्पित किये थे, जिसके उपरान्त भगवान शिव प्रसन्न होकर भगवान विष्णु को सुदर्शन चक्र प्रदान किया था। इसलिए आज के दिन भगवान विष्णु को कमल चढ़ाते है। 

तुलसी विवाह

  देवी वृंदा भगवान विष्णु की अनन्य भक्त थी। उनका विवाह जलंधर नामक राक्षस से हुआ था। सभी उस राक्षस के अत्याचारों से त्रस्त आ गए थे। जब देवों और जलंधर के बीच युद्ध हुआ तो वृंदा अपने पति की रक्षा हेतु अनुष्ठान करने बैठ गई और संकल्प लिया कि जब तक उनके पति युद्ध से वापस नहीं आ जाते अनुष्ठान नहीं छोड़ेंगी। देवी वृंदा के सतीत्व के कारण जलंधर को मारना असंभव हो गया था। त्रस्त होकर सभी देव गण विष्णु जी के पास गए और उनसे सहायता मांगी। इसके बाद विष्णु जी जलंधर का रुप धारण करके वृंदा के समक्ष गए। नारायण को अपना पति समझकर वृंदा पूजा से उठ गई और उसका व्रत टूट गया। परिणाम स्वरुप युद्ध में जलंधर की मृत्यु हो गई और जलंधर का सिर महल में जाकर गिरा। यह देख वृंदा ने कहा कि जब मेरे स्वामी की मृत्यु हो गई है, तो फिर मेरे समक्ष कौन है। इसके बाद विष्णु जी अपने वास्तविक रूप में आ गए। जब वृंदा को सारी बात ज्ञात हुई तो उन्होंने विष्णु जी से कहा कि- हे नारायण मैंने जीवन भर आपकी भक्ति की है, फिर आपने मेरे साथ ऐसा छल क्यों किया? विष्णु जी के पास वृंदा के प्रश्नों का कोई उत्तर नहीं था। वे चुपचाप खड़े होकर सुनते रह...

छठ कथा

  छठ पूजा संतान प्राप्ति और संतान की दीर्घायु के लिए की जाती है। ये पूजा चार दिन की होती है।  प्रथम दिन - नहाय खाय द्वितीय दिन - खरना(खीर खाना) तृतीय दिन - निर्जला व्रत के साथ संध्या अर्घ्य चतुर्थ दिन - उगते सूर्य को अर्घ्य दे कर पारण इन चार दिनों में सूर्य देव और छठ मईया की पूजा की जाती है।  क्या है छठ मईया की कहानी? सूर्य की किरणें पेड़-पौधे, फल-फूल  को जीवन प्रदान करती है और यही पेड़ पौधे प्राणी जीवन का आधार है। इसीलिए सूर्य देव को जीवन प्रदायी माना जाता है।  आदिकाल में राजा प्रियंवद और रानी मालिनी की कोई संतान नहीं थी। इसलिए इस दंपति ने महर्षि कश्यप के कहने पर यज्ञ किया और यज्ञ उपरांत महर्षि कश्यप ने सूर्य देव का नमन कर प्रियंवद की पत्नी मालिनी को खीर दी, जिसके चलते उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई(छठ पूजा के द्वितीय दिन खीर खाने का प्रचलन)। लेकिन दुर्भाग्य वश उनका पुत्र मरा हुआ पैदा हुआ, जिससे विचलित हो राजा-रानी ने ख़ुद के प्राण त्यागने की सोची। तभी माँ कात्यायनी वहाँ प्रकट हुईं और माँ कात्यायनी के आशीर्वाद से राजा प्रियंवद और रानी मालिनी का पुत्र पुनर्जीवित...

काशी की देव दीपावली

जब त्रिपुरासुर राक्षस ने अपने आतंक से मनुष्यों सहित देवी-देवताओं और ऋषि मुनियों आदि सभी को त्रस्त कर दिया था, तब सभी देव गणों ने भगवान शिव से उस राक्षस का अंत करने हेतु निवेदन किया।  जिसके बाद भगवान शिव ने त्रिपुरासुर राक्षस का वध कर दिया। देवता अत्यंत प्रसन्न होकर शिव जी का आभार व्यक्त करने के लिए उनकी नगरी काशी में पधारे। कार्तिक मास की पूर्णिमा को देवताओं ने काशी में अनेकों दीए जलाकर भगवान शिव का सत्कार किया। यही कारण है कि हर साल कार्तिक मास की पूर्णिमा पर  काशी में देव दीपावली मनाई जाती है। देव दीपावली हर साल दीपावली के 15 दिन बाद मनाया जाता है।  मान्यता है की इस दिन देवता पृथ्वी पर आकर गंगा में स्नान करते हैं। इस दिन दीपदान करने का भी विशेष महत्व होता है और इससे देवता गण भी प्रसन्न होते हैं।  

दीपावली

  उत्तर भारत में दीपावली को बड़े धूम धाम से 5 दिनों तक मनाया जाता है और हर एक दिन का एक अलग ही महत्व है। पहला दिन - धनतेरस  ( यमराज, धन के देवता कुबेर और आयुर्वेदाचार्य धन्वंतरि की पूजा ) दूसरे दिन - नरक चतुर्दशी, छोटी दीपावली तीसरा दिन - दीपावली ( माँ लक्ष्मी की पूजा ) चौथे दिन - गोवर्धन पूजा पांचवा दिन - भाई दूज ( यम द्वितीया ) कैसे हुयी थी दीपावली पर्व मनाने की शरुवात? सतयुग में जब देवता दुर्वासा ऋषि के श्राप से शक्तिहीन हो गये तो वो भगवान विष्णु के परामर्शानुसार दैत्यों के साथ समुद्र मंथन में जुट गए। जहाँ देवताओं की अगुवाई इन्द्र कर रहे थे, वही दैत्यों की अगुवाई प्रह्लाद पौत्र राजा बलि कर रहे थे। समुद्र मंथन के अंतिम चरण में भगवान धन्वंतरि( आयुर्वेद के भगवान ) अमृत कलश के साथ प्रकट हुए थे। ( इस दिन को बाद में धनतेरस के रूप में मनाया जाने लगा तथा भारत सरकार ने इस दिन को राष्ट्रीय आयुर्वेदिक दिवस घोषित किया है ) अमृत के प्रकट होते ही शक्तिशाली दैत्यों ने अमृत भगवान धन्वंतरि के हाँथ से छीन लिया। परन्तु दैत्यों के अमृतपान करने से पहले भगवान विष्णु वहाँ पर मोहिनी रूप में प्रकट ह...

सम्पूर्ण बृहस्पति कथा

  बृहस्पति मंत्र ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरुवे नमः! ॐ बृं बृहस्पतये नमः! पीला रंग, स्वर्ण धातु, पीला रत्न पुखराज एवं पीला नीलम, शीत ऋतु, पूर्व दिशा, अंतरिक्ष एवं आकाश तत्त्व बृहस्पति को प्रिय है। बृहस्पति एवं शुक्र देव बृहस्पति अंगऋषि के पुत्र है। इनकी शिक्षा दीक्षा इनके पिता अंगऋषि के आश्रम में हुयी थी। अंगऋषि के आश्रम में बृहस्पति एव शुक्राचार्य(शुक्र देव) ने साथ में शिक्षा ग्रहण की। ऋषि शुक्राचार्य के श्रेष्ठ होने के बाद भी ज्यादा सम्मान ऋषि बृहस्पति को मिलता था। इस बात पर ऋषि शुक्राचार्य ने अंगऋषि का आश्रम छोड़ दिया तथा बाकी की शिक्षा सनकऋषि और गौतम ऋषि से ली। जब बृहस्पति को देवताओं ने गुरु बनाया तब शुक्राचार्य ने दैत्यों को अपना शिष्य बना लिया। बृहस्पति एवं चंद्र देव ऋषि बृहस्पति से बहुत से देवताओं ने शिक्षा ली। चंद्र देव भी शिक्षा प्राप्ति के उद्देश्य से ऋषि बृहस्पति को अपना गुरु बनाया। बृहस्पति की पत्नी तारा चंद्र देव  की सुंदरता पर मोहित होकर उनसे प्रेम करने लगी। तदोपरांत वह चंद्रमा के संग सहवास भी कर गई एवं बृहस्पति को छोड़ ही दिया। बृहस्पति के वापस बुलाने पर तारा ने व...

नल दमयंती कथा

 जूआ में सब कुछ हार कर वनवास के दौरान एक दिन धर्मराज युधिष्ठिर दुखी बैठे थे। उन्होंने अपनी कहानी महर्षि बृहदश्व को सुनाकर पूछा- क्या आपने मुझ जैसा भाग्यहीन राजा देखा है? फिर महर्षि बृहदश्व ने धर्मराज युधिष्ठिर को नल-दमयन्ती की कथा सुनाई- निषाद देश में राजा वीरसेन के पुत्र नल थे। वे बड़े गुणवान्, परम सुन्दर, सत्यवादी, जितेन्द्रिय, सबके प्रिय, वेदज्ञ एवं ब्राह्मणभक्त थे। उनकी सेना बहुत बड़ी थी और वो स्वयं अस्त्रविद्या में बहुत निपुण थे। वे वीर, योद्धा, उदार और प्रबल पराक्रमी भी थे। उन्हें जूआ खेलने का भी कुछ शौक था। उन्हीं दिनों विदर्भ देश में भीम नाम के एक राजा राज्य करते थे। वे भी नल के समान ही सर्वगुण सम्पन्न और पराक्रमी थे। राजा भीम ने दमन ऋषि को प्रसन्न करके, उनके वरदान से चार संतानें प्राप्त की थीं। जिनमे तीन पुत्र और एक कन्या थी।  पुत्रों के नाम- दम, दान्त, और दमन  पुत्री का नाम- दमयन्ती  दमयन्ती लक्ष्मी के समान रूपवती थी। उसके नेत्र विशाल थे। देवताओं और यक्षों ने भी वैसी सुन्दरी कन्या कहीं नहीं देखि थी। उन दिनों कितने ही लोग विदर्भ देश से निषाद देश में आते और र...

काली कथा

  माँ दुर्गा के स्वरुप माँ काली की पूजा नवरात्र के सातवे दिन में होती है।  आइये जाने माँ काली की कथा  दारुक वध  एक बार दारुक नामक असुर ने ब्रह्मा को प्रसन्न कर उनसे अमरता का वरदान माँगा। जब ब्रह्म जी ने अमरता का वरदान देने से मना किया तो दारुक ने उनसे अप्पा शक्ति एवं स्त्री के द्वारा मारे जाने का वर माँगा। उसे खुद पर इतना घमंड था की कोई स्त्री उसे मार ही नहीं सकती।   ब्रह्मा के द्वारा दिए गए वरदान से वह देवों और ब्राह्मणों को अत्यंत दुःख देने लगा। उसने सभी धर्मिक अनुष्ठान बंद करा दिए और स्वर्गलोक में अपना राज्य स्थापित कर लिया। सभी देवता,  भगवान ब्रह्मा और विष्णु के पास पहुंचे। तब ब्रह्मा जी ने बताया की यह दुष्ट केवल स्त्री द्वारा ही मारा जायेगा। तब ब्रह्मा, विष्णु सहित सभी देव स्त्री रूप धर कर दुष्ट दारुक से लड़ने गए। परतु दैत्य दारुक अत्यंत बलशाली था, उसने उन सभी को युद्ध में परास्त कर दिया।  इसके बाद ब्रह्मा, विष्णु समेत सभी देव भगवान शिव के धाम कैलाश पर्वत पहुंचे तथा उन्हें दैत्य दारुक के विषय में बताया। भगवान शिव ने उनकी बात सुन, माँ पार्...

नवरात्र कथा

 माँ दुर्गा के कई स्वरूप है। इनके कुछ प्रमुख स्वरूप माता सती, माँ चामुंडा, माँ लक्ष्मी, माँ पार्वती एवं माँ काली है।  एक पुरुष का जीवन एक स्त्री के बिना अधूरा होता है। ब्रह्मा, विष्णु और महेश को सम्पूर्ण करती है माँ दुर्गा। इन्होने लक्ष्मी रूप में विष्णु तथा पार्वती रूप में शिव को सम्पूर्ण किया। माँ दुर्गा के अनेक रूप इस ब्रह्माण्ड को सम्पूर्ण बनाते है।  नवरात्र कथा  भारतवर्ष,  आदि काल में, वर्ष के चार ऋतुओं में, माता के नौ रुपों का पूजन नवरात्र के रूप में प्रचलित हुआ।  चार नवरात्रि में से सबसे ज्यादा प्रचलन नववर्ष के नवरात्रि (चैत्र माह) के वसंत नवरात्रि का हुआ।  कई वर्ष के बाद, त्रेता युग मे चैत्र मास की नवरात्रि के नवे दिन (चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को) भगवान श्रीराम का जन्म हुआ, जिसे रामनवमी के रूप में मनाया जाता है।  रामनवमी के दिन सरयू नदी में नहा कर भगवान श्रीराम का पूजन किया जाता है।  श्रीराम के जन्म का वर्णन भये प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी। हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी॥ लोचन अभिरामा तनु घनस्यामा नि...

संपूर्ण बुध कथा

 बुध पीले रंग की पुष्पमाला तथा पीला वस्त्र धारण करते हैं। उनके शरीर की वर्ण कनेर के पुष्प की भाँती है। बुद्ध को एक शुभ ग्रह एवं बुद्धि का देवता माना जाता है।  बुध ग्रह का सूर्य और शुक्र के साथ मित्र भाव तथा चंद्रमा से शत्रुतापूर्ण भाव है। बुध ग्रह का अन्य ग्रहों के प्रति सामान्य भाव है। यह ग्रह बुद्धि, बुद्धिवर्ग, संचार, विश्लेषण, चेतना (विशेष रूप से त्वचा), विज्ञान, गणित, व्यापार, शिक्षा और अनुसंधान का प्रतिनिधित्व करता है। सभी प्रकार के लिखित शब्द और सभी प्रकार की यात्राएं बुध के अधीन आती हैं। हरे रंग, धातु, कांसा और रत्नों में पन्ना बुद्ध की प्रिय वस्तुएं हैं। इनके साथ जुड़ी- दिशा उत्तर(ईशानकोण) है, मौसम शरद ऋतु और तत्व पृथ्वी है। जिनके कुंडली में बुध मजबूत होता है वो व्यपार और नौकरी में तरक्की करते है। बुध मंत्र ॐ ब्रां ब्रीं ब्रौं स: बुधाय नम: ॐ बुं बुधाय नम: बुध जन्म कथा  महर्षि अत्रि और देवी अनुसूया के पुत्र चंद्र देव शिक्षा के लिए ऋषि बृहस्पति देव को अपना गुरु बनाया। बृहस्पति की पत्नी तारा चंद्र देव  की सुंदरता पर मोहित होकर उनसे प्रेम करने लगी। तदोपरांत वह च...

राम चालीसा

  ॥ दोहा ॥ आदौ राम तपोवनादि गमनं हत्वाह् मृगा काञ्चनं।  वैदेही हरणं जटायु मरणं सुग्रीव संभाषणं ॥ बाली निर्दलं समुद्र तरणं लङ्कापुरी दाहनम्।  पश्चद्रावनं कुम्भकर्णं हननं एतद्धि रामायणं ॥ ॥ चौपाई ॥ श्री रघुवीर भक्त हितकारी। सुन लीजै प्रभु अरज हमारी॥   1 निशिदिन ध्यान धरै जो कोई। ता सम भक्त और नहिं होई॥ ध्यान धरे शिवजी मन माहीं। ब्रह्म इन्द्र पार नहिं पाहीं॥ जय जय जय रघुनाथ कृपाला । सदा करो सन्तन प्रतिपाला ॥ दूत तुम्हार वीर हनुमाना। जासु प्रभाव तिहूं पुर जाना॥ तब भुज दण्ड प्रचण्ड कृपाला। रावण मारि सुरन प्रतिपाला॥ तुम अनाथ के नाथ गुंसाई। दीनन के हो सदा सहाई॥ ब्रह्मादिक तव पारन पावैं। सदा ईश तुम्हरो यश गावैं॥ चारिउ वेद भरत हैं साखी। तुम भक्तन की लज्जा राखीं॥ गुण गावत शारद मन माहीं। सुरपति ताको पार न पाहीं॥ नाम तुम्हार लेत जो कोई। ता सम धन्य और नहिं होई॥ राम नाम है अपरम्पारा। चारिहु वेदन जाहि पुकारा॥ गणपति नाम तुम्हारो लीन्हो। तिनको प्रथम पूज्य तुम कीन्हो॥ शेष रटत नित नाम तुम्हारा। महि को भार शीश पर धारा॥ फूल समान रहत सो भारा। पाव न कोऊ तुम्हरो पारा॥ भरत नाम तुम्हरो उ...

दुर्गा चालीसा

  ॥ चौपाई ॥   नमो नमो दुर्गे सुख करनी। नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी॥    1  निरंकार है ज्योति तुम्हारी। तिहूं लोक फैली उजियारी॥ शशि ललाट मुख महाविशाला। नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥  रूप मातु को अधिक सुहावे। दरश करत जन अति सुख पावे॥ तुम संसार शक्ति लै कीना। पालन हेतु अन्न धन दीना॥  अन्नपूर्णा हुई जग पाला। तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥ प्रलयकाल सब नाशन हारी। तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥  शिव योगी तुम्हरे गुण गावें। ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥ रूप सरस्वती को तुम धारा। दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा॥  धरयो रूप नरसिंह को अम्बा। परगट भई फाड़कर खम्बा॥ रक्षा करि प्रह्लाद बचायो। हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥  लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं। श्री नारायण अंग समाहीं॥ क्षीरसिन्धु में करत विलासा। दयासिन्धु दीजै मन आसा॥  हिंगलाज में तुम्हीं भवानी। महिमा अमित न जात बखानी॥ मातंगी अरु धूमावति माता। भुवनेश्वरी बगला सुख दाता॥  श्री भैरव तारा जग तारिणी। छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥ केहरि वाहन सोह भवानी। लांगुर वीर चलत अगवानी॥  कर में खप्पर खड्ग विराजै। जाको देख काल...