प्रोजेक्ट नहीं है खास, फिर भी प्रोफेसर को है आस
की होगा अब धमाल, करेंगे हम जैसे भी कमाल
तो लो हो गया जो होना था, बना दिया प्रोजेक्ट को एक सवाल
सुलझे न जो किसी से, ये है ऐसा एक बवाल
रातो को इसने हमें जगाया, फिर भी समझ मे कुछ ना आया
इस पर भी करते है मस्ती, ऐसी है हमारी बस्ती
बचा न कोई इस वार से, प्रोफेसर की फटकार से
फिर भी लैब का किया बंटाधार, ऐसे ही हैं हमारे यार
जब भी प्रोफेसर ने बैंड बजाया, उसे मस्ती मे हमने उड़ाया
हमने इन बजते पलो को, और भी हसीन बनाया
देख हसीना को हर जगह, हमने बस सीटी बजाया
अपने बैंड के किस्सो से, कितनो की मुस्कान सजाया
करते हम लैब का बहिस्कार, इस्से हुए कितने अविष्कार
समझते नहीं प्रोफेसर इसे, और करते रहे हमारा तिरस्कार
इस तिरस्कार के दम पर, कुछ ऐसा अविष्कार कर जायेंगे
हुआ नहीं था अब तक जो, वो काम हम कर जायेगे
आयी है अब आन पे, खलेंगे अब जान पे
प्रोजेक्ट के अंतिम छणो मे, करेंगे काम तमाम से
इस प्रोजेक्ट की गाथा, ऐसी हम बनायेंगे
सुने सभी दिल थाम के, इतना झूठ मिलायेंगे ....................................
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