अक्सर देखा है हमने
मुफ़लिसों के शहर में
दीवानी रात बैंगानी होती है
बाते तो होती है मगर
जुबा खामोश हर रात होती है
.
पढ़ लेते वो नजरे काश
तो बाते सब साफ़ होती है
लड़खड़ाती सी जुबाँ पे
राते सब साफ़ होती है
.
उम्मीदों ने खोले पर तो
आसमान बेपाक होते है
जमीन तो होती है पर
काँटे साथ होते है
.
दो कदम के सफर में
अलफ़ाज़ साथ होते है
टूटे से लफ्ज़ो में
दर्द अलफ़ाज़ होते है
.
अक्सर देखा है हमने
मुफ़लिसों के शहर में
टूटे से पँखो पे
उम्मीद बेपाक होते है .....
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