ये युद्ध के मैदान है
लहू के रंग ही जाने है
है वीर की तलब इसे
हर जज्बे को पहचाने है
हर शाम है ढली यहाँ साँसे कई वीरो की
हर सुबह में है रक्त की लाली यहाँ घुली हुई
वो आसमान भी देखता है ये रंगमंच जान कर
की आज फिर लहू बहे युद्ध के मचान पर
जिन्हे इश्क़ भी है जंग से
और चाहत लहू के रंग से
बन के अधर है वो खड़े
मातृभूमि के इस तरंग में .....
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