अँधेरे का मैं कायल हूँ
क्यू खीचते फिर मुझे उजाले है
शायद कोई आँधी है बाकी
जो ताकते मुझे किनारे है
उम्मीद के धागे है टूटे
पलकों पे दर्द के प्याले है
बेचैन सी ठहरी रातो में
कुछ मर्ज़ तो काफी पुराने है
सूखे पत्तो की डाली को
चिंगारी एक सुलगती है
बारिश का तो पता नहीं
अब राख महकती जाती है
कुछ तेज हवा के झोको ने
लपटो को यूँ बहलाया
एक शाख के जलने के संग
पूरे जंगल को है जलाया
बेघर से परिंदे यूँ टूटे
कुछ आस नजर नहीं आती है
है नजर गयी जहा दूर तलक
बस राख नजर ही आती है
है नजर गयी जहा दूर तलक
बस राख नजर ही आती है .....
क्यू खीचते फिर मुझे उजाले है
शायद कोई आँधी है बाकी
जो ताकते मुझे किनारे है
उम्मीद के धागे है टूटे
पलकों पे दर्द के प्याले है
बेचैन सी ठहरी रातो में
कुछ मर्ज़ तो काफी पुराने है
सूखे पत्तो की डाली को
चिंगारी एक सुलगती है
बारिश का तो पता नहीं
अब राख महकती जाती है
कुछ तेज हवा के झोको ने
लपटो को यूँ बहलाया
एक शाख के जलने के संग
पूरे जंगल को है जलाया
बेघर से परिंदे यूँ टूटे
कुछ आस नजर नहीं आती है
है नजर गयी जहा दूर तलक
बस राख नजर ही आती है
है नजर गयी जहा दूर तलक
बस राख नजर ही आती है .....
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