यादो की उलझी सी डाली पे
ना जाने कब परिंदो ने घर बना लिया
मैंने कई दफा सोचा सुलझने को
पर परिंदो का घर ना तोड़ सका
वक़्त गुजरता रहा
और उलझने वही रही
धीरे-धीरे परिंदो की कई पीढ़ीया बीत गयी
कल जहाँ चंद तिनके ना बिखेर सका
आज उस शाख पर कई घर बस गए
और हर गुजरते लम्हे में
घरो का बोझ शाख को एक ओर झुकाता रहा
और शाख वक़्त दर वक़्त
पेड़ से उखड़ने लगा
धीरे धीरे वक़्त उस ओर बढ़ने लगा
जब उलझी शाख जुदा होने को तैयार
और उलझन अब इस बात की थी
की कई परिंदे कही बेघर ना हो जाएंगे ......
ना जाने कब परिंदो ने घर बना लिया
मैंने कई दफा सोचा सुलझने को
पर परिंदो का घर ना तोड़ सका
वक़्त गुजरता रहा
और उलझने वही रही
धीरे-धीरे परिंदो की कई पीढ़ीया बीत गयी
कल जहाँ चंद तिनके ना बिखेर सका
आज उस शाख पर कई घर बस गए
और हर गुजरते लम्हे में
घरो का बोझ शाख को एक ओर झुकाता रहा
और शाख वक़्त दर वक़्त
पेड़ से उखड़ने लगा
धीरे धीरे वक़्त उस ओर बढ़ने लगा
जब उलझी शाख जुदा होने को तैयार
और उलझन अब इस बात की थी
की कई परिंदे कही बेघर ना हो जाएंगे ......
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