आँखों
में ख़्वाब थे रोटी के और खुदा चाँद दे गया
भूख की बेचैनी
भरी हमें ऐसी कई रात दे गया
अपनी
इस बेचैनी को चाँद से मै मिटाऊं कैसे
ये
समझने को नासमझ खुदा तनहा रात दे गया.....
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दीवार
के तपते कोनो में
गुजारी
रातें सर्द कई
तेज
हवा बारिश के छींटे
सुर्ख
दरारों के थे मर्ज कई .....
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नज़रो
से नज़रे अदा कर गए
एक
नज़र में ही गुनाह कर गए
हम
खोये रहे मासूमियत में एक
और
मासूमियत से वो तबाह कर गए .....
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कागज़ों
पे दर्द के किस्से आज हो गए
रूठे
हुए से मुझसे अलफ़ाज़ हो गए
ख्वाइशे
ले आयी जनाजे तक मुझे
और
ख्वाइश के हिस्से हम आज हो गए .....
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रातो
ने आँखों पे पहरे लगा दिए
नजरो
पे ख़्वाबों के सहरे लगा दिया
ख्वाब
दिया दर्दो के समंदर का एक
और
अश्क़ो के हिसाब गहरे लगा दिए .....
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ख़ामोशी
दर्द को गवारा था
मिला
हर दर्द यूँ दोबारा था
रोक
रखा था हर अश्क़ को
पर
अश्क़ का और इशारा था ....
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मैकदे
की फिर आस में चले
दो
बूँद की एक प्यास में चले
जिंदगी
ने ले ली करवटे दरम्याँ
और
हम टूटती हुई साँस में चले .....
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एक कागज़ की कश्ती पर
अरमान हज़ार सवार हुए
तूफ़ान ने रुख बदली
तो
अरमान में डूब के पार हुए
.....
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हवाओं की ये साजिश थी
या मौसम का तूफान
लूट लिया एक घर मेरा
और शहर वैसा का वैसा .....
हवाओं की ये साजिश थी
या मौसम का तूफान
लूट लिया एक घर मेरा
और शहर वैसा का वैसा .....
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