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Showing posts from November, 2017

बड़ी दूर उड़ गया वो परिंदा

बड़ी दूर उड़ गया वो परिंदा ख्वाइशे इश्क़ की मुहब्बत में बेखबर इस बात से की दिन के प्रहर ख़तम हो गए अँधेरे के साथ रास्तों की उलझने ना जाने किस ओर भटका गयी दूर तलक आशियान ना था रात सर्द और जहाँ ना था हर ओर बहता तूफान एक बेदर्द कोई ईमान ना था पलके थी नम ढलती हुयी पंखो में कोई जान ना था उड़ते पंखो में टूटा यूँ बाकी कोई अरमान ना था बड़ी दूर उड़ गया था वो परिंदा ख्वाईशो का अब तूफान ना था .....

कोई और सबेरा ना हो अब

एक रात हो ऐसी काली सी कोई और सबेरा ना हो अब मांगे ये दुआ अब दिल मेरा कोई और बसेरा ना हो अब हम चलते रहे बस राहों में मंजिल बाखुदा ना हो अब बिखरे टुकड़े हम चुन लेंगे तू काँच बिखेर बस राहो में हसरत का पता अब रब जाने हम टूटे है इस पल में अब उम्मीदों से नाउम्मीदिगी है हर ओर खता कुछ यूँ बैठी है दिल रोता है अब रातो में आँखों में खला कुछ यूँ बैठी है दर्द के लम्हे पलकों में पलकों में दुआ कुछ यूँ बैठी एक रात हो ऐसी काली सी कोई औऱ सबेरा ना हो बस .....