दशावतार श्रीहरि विष्णु
धर्म की रक्षा हेतु श्रीहरि विष्णु ने हर काल में अवतार लिया।भगवान श्रीहरि विष्णु के 10 अवतार
सतयुग(5)- मत्स्य अवतार, हयग्रीव अवतार, कूर्म अवतार, वराह अवतार, नरसिंहावतार
त्रेता युग(3)- वामनावतार, परशुरामावतार, रामावतार
द्वापर युग(1)- कृष्णावतार
कलियुग (1)- कल्कि अवतार
भगवान विष्णु के सतयुग अवतारों को समझने के लिये राक्षसो की उत्पत्ति समझना जरूरी है।
ब्रह्मा ने 10 ऋषियों की रचना की। जिसमे से दो प्रमुख ऋषि- ऋषि मरीचि और ऋषि दक्ष
ऋषि मरीचि के पुत्र थे ऋषि कश्यप।
ऋषि दक्ष की कई पुत्रिया हुयी - 13 पुत्रियों की शादी ऋषि कश्यप से, 27 पुत्रियों की शादी चंद्र देव से तथा माता सती की शादी शिवा से।
ऋषि कश्यप + अदिति (दक्ष पुत्री) --> सुर/देव पुत्र --> सूर्य, अग्नि, वरुण, इंद्र, वामनावतार
ऋषि कश्यप + दिति (दक्ष पुत्री) --> असुर पुत्र --> हिरण्याक्ष और हिरणाकश्यप
ऋषि कश्यप + दानू(दक्ष पुत्री) --> असुर पुत्र --> हयग्रीव
हयग्रीव(अश्व) नाम के राक्षस ने माँ भगवती से अमरता का वरदान माँगा। अमरता का वरदान मना करने पर, हयग्रीव ने माँगा कि उसे कोई और नहीं सिर्फ हयग्रीव(अश्व) ही मार सके।
हयग्रीव ने ब्रह्मा से चारो वेदो को छीन लिया और पूरे पृथ्वी पर हाहाकार मचा दिया।
ब्रह्मा और सभी देवता परेशान होकर भगवान विष्णु के पास गये। विष्णु निद्रामग्न थे और पास में ही उनकी चढ़ी हुयी धनुष राखी हुयी थी। उन्हें जगाने की कोशिश में उनका धनुष चल गया और भगवान विष्णु का सर कट कर अदृश्य हो गया। सभी देवता बहुत परेशान हुये, तब माँ भगवती प्रकट होकर ब्रह्मा जी से बोली - भगवान विष्णु के सर की जगह घोड़े का शिर जोड़ दे, जो भगवान् का हयग्रीव अवतार होगा।
भगवान विष्णु का कटा हुआ सर मत्स्य अवतार में पैदा हुआ और एक छोटी मछली के रूप में भगवान विष्णु राजा सत्यव्रत(सूर्य पुत्र) से मिले। भगवान ने सत्यव्रत से कहा- सुनो राजा सत्यव्रत! आज से सात दिन बाद प्रलय होगी- पूरी धरती जलमग्न हो जायेगी। एक विशाल नाव तुम्हारे पास आएगी। तुम सप्त ऋषियों, औषधियों, बीजों व प्राणियों को लेकर उसमें बैठ जाना, जब तुम्हारी नाव डगमगाने लगेगी, तब मैं मत्स्य के रूप में तुम्हारे पास आऊंगा। उस समय तुम वासुकि नाग के द्वारा उस नाव को मेरे सींग से बांध देना।
हयग्रीव दैत्य को जब भगवान विष्णु के हयग्रीव अवतार का पता चला तो वो जाकर समुंद्र में छुप गया। जिससे समुंद्र में तूफ़ान आ गया और सारी धरती जलमग्न होने लगी। इन सात दिनों में एक छोटी मछली एक बड़े मत्स्य में बदल गयी(मत्स्य अवतार)। भगवान के मत्स्य अवतार ने बड़ी नाव को वासुकि नाग के जरिये हिमालय की तरफ खींचा तथा इसके बाद भगवान् के मत्स्य अवतार ने समुद्र के अंदर हयग्रीव नामक राक्षस को ढूढ़ा। जिसके बाद भगवान विष्णु के हयग्रीव अवतार ने राक्षस हयग्रीव का वध किया। इसके बाद समुद्र का जल स्तर गिर गया और धरती पर जीवन फिर से सामान्य हो गया। ये थे भगवान् विष्णु के पहले दो अवतारों की कथा।
3. कूर्म अवतार:
धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान विष्णु ने कूर्म (कछुए) का अवतार लेकर समुद्र मंथन में सहायता की थी। भगवान विष्णु के कूर्म अवतार को कच्छप अवतार भी कहते हैं। इसकी कथा इस प्रकार है- एक बार महर्षि दुर्वासा ने देवताओं के राजा इन्द्र को श्राप देकर श्रीहीन कर दिया। इन्द्र जब भगवान विष्णु के पास गए तो उन्होंने समुद्र मंथन करने के लिए कहा। तब इन्द्र भगवान विष्णु के कहे अनुसार दैत्यों व देवताओं के साथ मिलकर समुद्र मंथन करने के लिए तैयार हो गए।
समुद्र मंथन करने के लिए मंदराचल पर्वत को मथानी एवं नागराज वासुकि को नेती बनाया गया। देवताओं और दैत्यों ने अपना मतभेद भुलाकर मंदराचल को उखाड़ा और उसे समुद्र की ओर ले चले, लेकिन वे उसे अधिक दूर तक नहीं ले जा सके। तब भगवान विष्णु ने मंदराचल को समुद्र तट पर रख दिया। देवता और दैत्यों ने मंदराचल को समुद्र में डालकर नागराज वासुकि को नेती बनाया। किंतु मंदराचल के नीचे कोई आधार नहीं होने के कारण वह समुद्र में डूबने लगा। यह देखकर भगवान विष्णु विशाल कूर्म (कछुए) का रूप धारण कर समुद्र में मंदराचल के आधार बन गए। भगवान कूर्म की विशाल पीठ पर मंदराचल तेजी से घुमने लगा और इस प्रकार समुद्र मंथन संपन्न हुआ।
4. वराह अवतार :
वराह अवतार की कथा- पुरातन समय में दैत्य हिरण्याक्ष(दिति पुत्र) ने जब पृथ्वी को ले जाकर समुद्र में छिपा दिया। तब ब्रह्मा की नाक से भगवान विष्णु वराह रूप में प्रकट हुए। भगवान विष्णु के इस रूप को देखकर सभी देवताओं व ऋषि-मुनियों ने उनकी स्तुति की। सबके आग्रह पर भगवान वराह ने पृथ्वी को ढूंढना प्रारंभ किया। भगवान वराह ने अपनी थूथनी की सहायता से पृथ्वी का पता लगा लिया और समुद्र के अंदर जाकर अपने दांतों पर रखकर वे पृथ्वी को बाहर ले आए।
हिरण्याक्ष दैत्य ने यह देखकर भगवान विष्णु के वराह रूप को युद्ध के लिए ललकारा। दोनों में भीषण युद्ध हुआ। अंत में भगवान वराह ने हिरण्याक्ष का वध कर दिया।
5. भगवान नृसिंह :
भगवान विष्णु ने नृसिंह अवतार लेकर दैत्यों के राजा हिरणाकश्यप(दिति पुत्र) का वध किया था। राजा हिरणाकश्यप स्वयं को भगवान से भी अधिक बलवान मानता था। उसे मनुष्य, देवता, पक्षी, पशु, न दिन में, न रात में, न धरती पर, न आकाश में, न अस्त्र से, न शस्त्र से मरने का वरदान प्राप्त था। उसके राज में जो भी भगवान विष्णु की पूजा करता था उसको दंड दिया जाता था। उसके पुत्र का नाम प्रह्लाद था। प्रह्लाद बचपन से ही भगवान विष्णु का परम भक्त था। यह बात जब हिरणाकश्यप का पता चली तो वह बहुत क्रोधित हुआ और प्रह्लाद को समझाने का प्रयास किया, लेकिन फिर भी जब प्रह्लाद नहीं माना तो हिरणाकश्यप ने उसे मृत्युदंड दे दिया।
भगवान विष्णु के चमत्कार भक्त प्रह्लाद हर बार बच गया। हिरणाकश्यप की बहन होलिका, जिसे अग्नि से न जलने का वरदान प्राप्त था, वह प्रह्लाद को लेकर धधकती हुई अग्नि में बैठ गई। तब भी भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद बच गया और होलिका जल गई। जब हिरणाकश्यप स्वयं प्रह्लाद को मारने वाला था तब भगवान विष्णु नृसिंह का अवतार लेकर खंबे से प्रकट हुए और उन्होंने अपने नाखूनों से हिरणाकश्यप का वध कर दिया।
त्रेतायुग
6. वामन अवतार :
सत्ययुग में प्रह्लाद के पौत्र दैत्यराज बलि ने स्वर्गलोक पर अधिकार कर लिया। सभी देवता इस विपत्ति से बचने के लिए भगवान विष्णु के पास गए। तब भगवान विष्णु ने कहा कि मैं स्वयं देवमाता अदिति के गर्भ से उत्पन्न होकर तुम्हें स्वर्ग का राज्य दिलाऊंगा। त्रेता युग में भगवान विष्णु ने ऋषि कश्यप और अदिति के पुत्र के रूप में वामन अवतार(बौना अवतार) लिया। त्रेता युग में भगवान विष्णु का पहला अवतार वामन अवतार को माना जाता है।
एक बार जब बलि महान यज्ञ कर रहा था तब भगवान वामन बलि की यज्ञशाला में गए और राजा बलि से तीन पग धरती दान में मांगी। राजा बलि के गुरु शुक्राचार्य भगवान की लीला समझ गए और उन्होंने बलि को दान देने से मना कर दिया। लेकिन बलि ने फिर भी भगवान वामन को तीन पग धरती दान देने का संकल्प ले लिया। भगवान वामन खुद को बौने से बदलकर एक विशाल रूप धारण किया। भगवान् विष्णु के विशाल रूप ने एक पग में धरती और दूसरे पग में स्वर्ग लोक नाप लिया। जब तीसरा पग रखने के लिए कोई स्थान नहीं बचा तो बलि ने भगवान वामन को अपने सिर पर पग रखने को कहा। बलि के सिर पर पग रखने से बलि, पाताल के एक हीस्से सुतललोक में पहुंच गया। बलि की दानवीरता देखकर भगवान ने उसे सुतललोक का स्वामी बना दिया। इस तरह भगवान वामन ने देवताओं की सहायता कर उन्हें स्वर्ग पुन: लौटाया।
7. परशुराम अवतार :
प्राचीन समय में महिष्मती नगरी पर शक्तिशाली हैययवंशी क्षत्रिय सहस्त्रबाहु का शासन था। वह बहुत अभिमानी था और अत्याचारी भी। एक बार अग्निदेव ने उससे भोजन कराने का आग्रह किया। तब सहस्त्रबाहु ने घमंड में आकर कहा कि आप जहां से चाहें, भोजन प्राप्त कर सकते हैं, सभी ओर मेरा ही राज है। तब अग्निदेव ने गुस्से में आकर वनों को जलाना शुरु किया। एक वन में ऋषि आपव तपस्या कर रहे थे। अग्नि ने उनके आश्रम को भी जला डाला। इससे क्रोधित होकर ऋषि ने सहस्त्रबाहु को श्राप दिया कि भगवान विष्णु, परशुराम के रूप में जन्म लेंगे और न सिर्फ सहस्त्रबाहु का बल्कि समस्त क्षत्रियों का सर्वनाश करेंगे। इस प्रकार भगवान विष्णु ने भार्गव कुल में महर्षि जमदग्रि के पांचवें पुत्र के रूप में जन्म लिया। भगवान् परशुराम जन्म से ऋषि पर कर्म से छत्रिय है।
8. श्रीराम अवतार :
त्रेतायुग में राक्षसराज रावण का बहुत आतंक था। उससे देवता भी डरते थे। उसके वध के लिए भगवान विष्णु ने राजा दशरथ के यहां माता कौशल्या के गर्भ से पुत्र रूप में जन्म लिया। इस अवतार में भगवान विष्णु ने कई राक्षसों का वध किया और मर्यादापुर्षोत्तम राम के नाम से विख्यात हुये।
राजा दसरथ के कहने पर भगवान् राम वनवास गए। वनवास भोगते समय राक्षसराज रावण उनकी पत्नी सीता का हरण कर ले गया। सीता की खोज में भगवान लंका पहुंचे, वहां भगवान श्रीराम और रावण काबीच युद्ध हुआ। जिसमें रावण मारा गया। इस प्रकार भगवान विष्णु ने राम अवतार लेकर देवताओं को भय मुक्त किया।
द्वापरयुग
9. श्रीकृष्ण अवतार :
द्वापरयुग में भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण अवतार लेकर अधर्मियों का नाश किया। भगवान श्रीकृष्ण का जन्म कारागार में हुआ था। इनके पिता का नाम वसुदेव और माता का नाम देवकी था। पर इनका लालन पालन माता यशोदा और पिता नन्द ने किया। भगवान श्रीकृष्ण ने इस अवतार में अनेक चमत्कार किए और कई दुष्टों का सर्वनाश किया। कंस का वध भी भगवान श्रीकृष्ण ने ही किया।
कलियुग
10. कल्कि अवतार :
भगवान विष्णु का दसवा अवतार कल्कि है। कलयुग के इस काल में भगवान विष्णु कल्कि रूप में अवतरित होंगे।
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