प्राचीन काल में आतापी और वातापी नाम के दो दैत्य भाई दक्षिण भारत में निवास करते थे।
आतापी और वातापी दोनों ही मायावी दैत्य थे।
आतापी(ज्येष्ठ भ्राता)- किसी भी मृत व्यक्ति को आवाज दे कर जिन्दा करने की शक्ति
वातापी- कोई भी रूप धारण करने की शक्ति
दोनों मायावी दैत्य अपनी शक्ति के जरिये राहगीरों को लूटा करते थे। जब भी कोई राहगीर इनके क्षेत्र से गुजरता, आतापी उन्हें भोजन के लिए आमंत्रित करता।
भोजन से पूर्व वातापी बकरे का रूप धारण कर लेता। इसके बाद आतापी बकरे को काट कर उसका भोजन बनाता और यह भोजन राहगीर को देता। जब राहगीर दिया हुआ भोजन खा लेता, तब आतापी अपनी शक्ति से आवाज देकर वातापी को जीवित कर देता।
आतापी आवाज़ देता- वातापी अरे ओ वातापी बाहर आ जाओ। इस आवाज़ के बाद वातापी राहगीर का पेट चीर कर बहार आ जाता तथा राहगीर की मृत्यु के बाद आतापी और वातापी राहगीर की संपत्ति पर कब्ज़ा कर लेते। इस तरह से दोनों देत्यो ने कई राहगीरों को लूट कर अपार संपत्ति इकठ्ठा कर ली।
ऋषि अगस्त्य की कहानी
विदर्भ नरेश की पुत्री लोपामुद्रा से विवाह पश्चात, परिवार के भरण पोषण हेतु ऋषि अगस्त्य को धन की आवश्यकता महसूस हुयी।
ऋषि अगस्त्य वैभवसंपन्न राजा श्रुतर्वा के पास दान मांगने गए। पर राजा श्रुतर्वा की ख़राब आर्थिक स्थिति देखकर वो दूसरे राजा के पास दान प्राप्ति हेतु गए। दूसरे राजा के पास भी उन्हें निराशा ही मिली। तब उन्हें अपार संपत्ति के स्वामी आतापी के बारे में पता चला।
जब ऋषि अगस्त्य आतापी के पास पहुंचे तो आतापी ने उन्हें भोजन के लिए आमंत्रित किया। इसके बाद आतापी ने बकरे रूपी वातापी को काटकर भोजन के रूप में ऋषि अगस्त्य को प्रस्तुत किया। भोजन उपरांत जब आतापी ने आवाज़ लगाया "वातापी अरे ओ वातापी बाहर आ जाओ", तब ऋषि अगस्त्य के पेट में हलचल होने लगी।
ऋषि अगस्त्य तुरंत ही स्थिति को भाप गये। ऋषि अगस्त्य ने कमंडल से जल लेकर पेट पर हाँथ फेरा।
आतापी के कई बार आवाज़ लगाने पर भी वातापी बहार नहीं आया। आखिरखार ऋषि अगस्त्य ने बोला- तुम जिसे आवाज़ दे रहे हो उसे तो मैंने पचा लिया।
कुद्ध आतापी जब ऋषि अगस्त्य को मारने के लिए आगे बढ़ा तो ऋषि ने उसे भस्म कर दिया।
इसके बाद ऋषि अगस्त्य ने आवश्यक्तानुसार धनराशि लेकर बाकी की बची हुयी धनराशि उन दोनों राजाओ को दे दी जिनसे वो पहले दान लेने गए थे।
इस तरह से ऋषि अगस्त्य की आवश्यकता पूर्ण होने के साथ दोनों राजाओं की भी आर्थिक स्थिति सुधर गयी।
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