माँ दुर्गा के स्वरुप माँ काली की पूजा नवरात्र के सातवे दिन में होती है।
आइये जाने माँ काली की कथा
दारुक वध
एक बार दारुक नामक असुर ने ब्रह्मा को प्रसन्न कर उनसे अमरता का वरदान माँगा। जब ब्रह्म जी ने अमरता का वरदान देने से मना किया तो दारुक ने उनसे अप्पा शक्ति एवं स्त्री के द्वारा मारे जाने का वर माँगा। उसे खुद पर इतना घमंड था की कोई स्त्री उसे मार ही नहीं सकती।
ब्रह्मा के द्वारा दिए गए वरदान से वह देवों और ब्राह्मणों को अत्यंत दुःख देने लगा। उसने सभी धर्मिक अनुष्ठान बंद करा दिए और स्वर्गलोक में अपना राज्य स्थापित कर लिया। सभी देवता, भगवान ब्रह्मा और विष्णु के पास पहुंचे। तब ब्रह्मा जी ने बताया की यह दुष्ट केवल स्त्री द्वारा ही मारा जायेगा। तब ब्रह्मा, विष्णु सहित सभी देव स्त्री रूप धर कर दुष्ट दारुक से लड़ने गए। परतु दैत्य दारुक अत्यंत बलशाली था, उसने उन सभी को युद्ध में परास्त कर दिया।
इसके बाद ब्रह्मा, विष्णु समेत सभी देव भगवान शिव के धाम कैलाश पर्वत पहुंचे तथा उन्हें दैत्य दारुक के विषय में बताया। भगवान शिव ने उनकी बात सुन, माँ पार्वती की ओर देखा और कहा हे कल्याणी! जगत के हित के लिए और दुष्ट दारुक के वध के लिए मैं तुमसे प्रार्थना करता हुं। यह सुन माँ पार्वती मुस्कराई और अपने एक अंश को भगवान शिव में प्रवेश करा दिया।
माँ भगवती का वह अंश भगवान शिव के शरीर में प्रवेश कर उनके कंठ में स्थित विष से अपना आकार धारण करने लगा। विष के प्रभाव से वह काले वर्ण में परिवर्तित हो गया। भगवान शिव ने उस अंश को अपने भीतर महसूस कर अपना तीसरा नेत्र खोला और उनके तीसरे नेत्र द्वारा भयंकर-विकराल रूपी काले वर्ण वाली माँ काली उत्पन्न हुई। माँ काली के लालट में तीसरा नेत्र और चन्द्र रेखा थी। कंठ में कराल विष का चिन्ह था और हाथ में त्रिशूल व नाना प्रकार के आभूषण व वस्त्रों से वह सुशोभित थी। माँ काली के भयंकर व विशाल रूप को देख देवता लोग भी डर गए।
माँ काली के केवल हुंकार मात्र से दारुक समेत, सभी असुर सेना जल कर भस्म हो गई। माँ के क्रोध की ज्वाला से सम्पूर्ण लोक जलने लगा। उनके क्रोध से संसार को जलते देख, भगवान शिव श्मशान में पहुंच कर, एक बालक का रूप धारण कर लिया और वहां लेट कर रोने लगे। जब माँ काली ने शिव रूपी उस बालक को देखा तो वह बालक पर मोहित हो गयी। वातसल्य भाव से उन्होंने शिव को अपने हृदय से लगा लिया तथा अपने स्तनों से उन्हें दूध पिलाने लगी। भगवान शिव ने दूध के साथ ही उनके क्रोध(विष रूपी क्रोध, नीलकंठ का विष जिससे माँ काली उत्पन्न हुयी थी) का भी पान कर लिया।
शिवजी द्वारा माँ काली का क्रोध पी जाने के कारण वह मूर्छित हो गई। देवी को होश में लाने के लिए शिवजी ने शिव तांडव किया। होश में आने पर माँ काली ने जब शिव को नृत्य करते देखा तो वे भी नाचने लगी जिस कारण उन्हें योगिनी भी कहा गया।
रक्तबीज वध
फिर जब सृष्टि पर रक्तबीज नामक दैत्य का प्रलय बरसा तो माँ पार्वती ने फिर से माँ काली का रौद्र रूप धर कर रक्तबीज का विनाश किया। रक्तबीज का विनाश करने के बाद भी जब माँ काली का गुस्सा शांत नहीं हुआ, तब उनके गुस्से को शांत करने के लिए भगवान शिव उनके रास्ते में लेट गए। माता काली ने जब गलती से भगवान शिव पर अपना पैर रखा तो उनके मुख से जीभ बाहर आ गयी और उनका गुस्सा शांत हो गया। माँ काली के मुख से निकली जीभ उनके शांत स्वरुप को दर्शाता है। इसलिए माँ काली के मुख से बाहर निकले जीभ के प्रतिमा की पूजा की जाती है।
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