उत्पन्ना एकादशी तिथि- मार्गशीर्ष मास, कृष्ण पक्ष, एकादशी
सतयुग में मुर नामक एक बलशाली राक्षस था। जिसने अपने पराक्रम से स्वर्ग तक को जीत लिया था। उसके पराक्रम के आगे इन्द्र देव, वायु देव और अग्नि देव भी नहीं टिक पाए। अतः उन सभी को स्वर्ग लोक छोड़ना पड़ा। निराश होकर देवराज इन्द्र कैलाश पर्वत पर जाकर भगवान शिव के समक्ष अपना दु:ख बताया। इन्द्र की प्रार्थना सुनकर भगवान शिव ने उन्हें भगवान विष्णु के पास जाने के लिए कहा। इसके बाद सभी देवगण क्षीरसागर पहुँचकर भगवान विष्णु से राक्षस मुर से अपनी रक्षा की प्रार्थना करते हैं। भगवान विष्णु सभी देवताओं को रक्षा का आश्वासन देते हैं।
इसके बाद भगवान विष्णु राक्षस मुर से युद्ध करने चले जाते हैं। कई सालों तक भगवान विष्णु और राक्षस मुर में युद्ध चलता है। लम्बे समय तक युद्ध लड़ने के कारण थकान से भगवान विष्णु को नींद आने लगती है और वो विश्राम करने के लिए एक गुफा में जाकर वहाँ सो जाते हैं। भगवान विष्णु के पीछे मुर दैत्य भी उस गुफा में पहुंच जाता है। भगवान विष्णु को सोता देख, राक्षस मुर उन पर आक्रमण कर देता है। उसी समय भगवान विष्णु के शरीर से एक देवी उत्पन्न होती है। इसके बाद मुर राक्षस और देवी में युद्ध चलता है। देवी मुर दैत्य का वध कर देती है। इसके बाद भगवान विष्णु की नींद खुलने पर उन्हें पता चलता है कि किस तरह से उस देवी ने भगवान विष्णु की रक्षा की है। इसपर भगवान विष्णु उस देवी को वरदान देते हैं कि तुम्हारी पूजा करने वाले के सभी पाप नष्ट हो जाएंगे और उसे मोक्ष की प्राप्ति होगी।
देवी की उत्पत्ति एकादशी के दिन हुयी थी, जिस कारण भगवान् विष्णु ने देवी को एकादशी नाम दिया। मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष के एकादशी के दिन देवी एकादशी उत्पन्न हुई थीं, इसीलिए इस तिथि को उत्पन्ना एकादशी कहा जाता है।
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