जिन आत्माओं को भगवान विष्णु के निवास स्थान बैकुण्ड धाम में जगह मिलती है उन्हें मोक्ष मिल जाता है।
मार्गशीर्ष मास के शुक्लपक्ष की एकादशी को मोक्षदा एकादशी कहा जाता है। इसी दिन श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था, जिस वजह से इसे गीता जयंती के नाम से भी जानते है।
ये एकादशी धनुर्मास एकादशी के नाम से भी जानी जाती है। धनुर्मास- वह सूर्यमास जब सूर्य धनु राशि में प्रवेश करता है।
मोक्षदा एकादशी व्रत कथा
चंपा नगरी में राजा वैखानस का राज था। नगर की जनता राजा से बहुत खुश थी। राजा अपनी जनता है पूरा ख्याल रखते थे। एक रात राजा ने सपने में देखा की उनके पूर्वज नरक की प्रताड़ना झेल रहे हैं। पितरों की यह स्थिति देखकर राजा बहुत दुखी हुए। सुबह होते ही उन्होंने राज्य के पुरोहित को बुलाकर पूर्वजों की मुक्ति का उपाय पूछा, तब ब्राह्मणों ने कहा कि इस समस्या का हल पर्वत ऋषि ही बता सकते हैं।
राजा वैखानस ब्राह्मणों की बात सुनते ही पर्वत ऋषि के आश्रम पहुंचे और नरक भोग रहे पितरों की मुक्ति का मार्ग जानने का आग्रह किया। ऋषि पर्वत ने बताया कि उनके पूर्वज ने अपने पिछले जन्म में एक पाप किया था, जिस कारण वो नर्क की यातनाएं भोग रहे हैं। सीके बाद ऋषि ने राजा को पितरों की मोक्ष प्राप्ति का मार्ग बताया। ऋषि बोले मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी जिसे मोक्षदा एकादशी कहते है, उस दिन श्रीहरि विष्णु का विधि पूर्वक व्रत, और दान करने की सलाह दी। इस व्रत के प्रभाव से पितर नरक से मुक्त हो जाएंगे।
इसके बाद मोक्षदा एकादशी पर राजा ने ऋषि के कहेनुसार पूरी विधि से पूजा और व्रत का पालन किया जिसके परिणाम स्वरूप पूर्वजों को मोक्ष प्राप्त हुआ और जन्म-मरण के बंधन से मुक्ति मिल गई.
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