मथुरा भगवान श्री कृष्ण की नगरी है। यही पर भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ तथा भगवान श्री कृष्ण का बचपन यहाँ गाय चराते हुए, बंजारों की तरह बिता।
जन्म- कंस के कारावास में, जिसे आज कृष्ण जन्म स्थान के नाम से जानते हैं। मुगल शासन के दौरान, औरंगजेब ने अपने शासन में कृष्ण जन्म स्थान पर शाही ईदगाह मस्जिद का निर्माण करवाया था।
गोकुल- यहाँ पर भगवान श्री कृष्ण 3 बरस की आयु तक रहे तथा पूतना का वध किया।
वृन्दावन- जब गोकुल में बाल कृष्ण पर कई राक्षसों के हमले हुए, तब नन्द महराज गोकुल छोड़ कर वृन्दावन में बस गये। यहाँ पर भगवान श्री कृष्ण 3 से 6 बरस की आयु तक रहे। यही पर भगवान श्री कृष्ण ने कालिया नाग को हराया।
वृन्दावन के क्षेत्र में ही भगवान श्री कृष्ण ने गोपीयो के साथ रासलीला रचाया था।
निधिवन(वृन्दावन)- निधिवन वृन्दावन क्षेत्र में तुलसी के पेड़ो का वन है। इन तुलसी के पेड़ो को भगवान श्री कृष्ण, राधा रानी और गोपीयो का रूप माना जाता है। और ये भी मान्यता है कि आज भी हर रात भगवान श्री कृष्ण, राधा तथा गोपीयो के साथ यहाँ पर रासलीला रचाते है।
प्रेम मन्दिर(वृन्दावन)- प्रेम मन्दिर(2001-2012) की स्थापना जगद्गुरु श्री कृपालु महाराज द्वारा की गयी थी। इस मन्दिर को बनाने के लिए इटली के संगमरमर का इस्तेमाल किया गया है। ये मन्दिर भगवान श्री कृष्ण और राधा रानी के प्रेम को दर्शाता है। यह मन्दिर भगवान राम और माता सीता का भी मन्दिर है।
ISKCON(वृन्दावन)- ISKCON मन्दिर का पूरा नाम International Society for Krishna Consciousness है। ISKCON एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था है। यही वजह है कि ISKCON मन्दिर विदेशों में बहुत ज्यादा प्रचलित है।
ISKCON मन्दिर वृन्दावन का निर्माण 1975 में हो गया था। इसकी नींव ISKCON के संस्थापक स्वामी प्रभुपाद द्वारा रखी गयी थी।
गोवर्धन- वृन्दावन के बाद नन्द महराज गोवर्धन चले गए निवास के लिए। यहाँ पर भगवान श्री कृष्ण 6 से 10 बरस की आयु तक रहे। यही पर भगवान श्री कृष्ण ने इंद्र का घमण्ड तोड़ने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी अगुली पर ऊठा लिया।
गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा 22 Km की है। गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा दानघाटी मंदिर से शुरू तथा मानसी गंगा पर खत्म होती है।
माना जाता है कि गोवर्धन पर्वत आदिकाल में हिमालय पर्वत श्रृंखला का हिस्सा था। जब भगवान श्री राम समुद्र पार करने के लिए सेतु का निर्माण कर रहे थे, तब हनुमान जी गोवर्धन पर्वत को सेतु निर्माण हेतु दक्षिण की ओर ले कर जा रहे थे। जब हनुमान जी को पता चला कि सेतु का काम पूर्ण हो गया है, तब हनुमान जी गोवर्धन पर्वत को द्रोणांचल पर्वत के ऊपर रखकर भगवान श्री राम के पास चले गए।
बहुत समय बाद पुलस्त्य ऋषि गोवर्धन पर्वत की खूबसूरती से बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने द्रोणांचल पर्वत से इसे उठाकर साथ लाना चाहा तो गिरिराज जी ने कहा कि आप मुझे जहां भी पहली बार रखेंगे मैं वहीं स्थापित हो जाउंगा। फिर रास्ते में साधना के लिए पुलस्त्य ऋषि ने पर्वत को नीचे रख दिया और जब वे गोवर्धन पर्वत को दोबारा हिला नहीं सके तो क्रोध में आकर उन्होंने पर्वत को शाप दे दिया कि वह रोज घटता जाएगा। माना जाता है की उसी समय से गोवर्धन पर्वत का कद लगातार घट रहा है।
नन्दगाँव- नन्दगाँव के बाद नन्द महराज निवास के लिए नए स्थान पर चले गए, जिसे आज नन्दगाँव के नाम से जाना जाता हैं। यहाँ पर भगवान श्री कृष्ण 10 से 16 बरस की आयु तक रहे। बाद में कंस का वध करने के बाद भगवान श्री कृष्ण शिक्षा के लिए उज्जैन चले गए।
राधा जी
नन्द महराज की तरह वृषभानु जी भी बंजारे थे, जिस वजह से राधा जी का लालन पालन अलग अलग जगहों पर हुआ।
रावल गांव- वृषभानु जी को एक सरोवर के सुनहरे कमल में एक दिव्य कन्या(राधा जी) लेटी हुई मिली। वे राधा जी को घर लेकर आए लेकिन राधा ने आंखें नहीं खोली। पिता और माता ने समझा कि कन्या देख नहीं सकतीं लेकिन प्रभु लीला ऐसी थी कि राधा सबसे पहले श्री कृष्ण को ही देखना चाहती थीं। अत: जब बाल रूप में श्री कृष्ण जी से उनका सामना हुआ तो राधा जी ने अपनी आंखें खोल दीं। रावल गांव में राधा जी 3 बरस की आयु तक रहीं।
रावल गांव गोकुल से 7.5 Km की दूरी पर है।
बाद में वृषभानु जी रावल गांव छोड़कर वृन्दावन फिर गोवर्धन और अन्त में बरसाने रहने के लिए चले गए।
श्री कृष्ण गोकुल → वृन्दावन → गोवर्धन → नन्दगाँव
राधा जी रावल → वृन्दावन → गोवर्धन → बरसाने
मथुरा में भगवान श्री कृष्ण से जुड़े प्रमुख स्थलों को यमुना नदी के सापेक्षिक दूरी के साथ निचे चित्र में दर्शाया गया है।
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