ज्योतिर्लिंग
ज्योतिर्लिंग= ज्योति + लिंग (अर्थात ज्योति या प्रकाश का प्रतीक)
कैसे हुयी इन ज्योति के प्रतीको की उत्पत्ति?
एक बार भगवान ब्रह्म और भगवान विष्णु में इस बात को लेकर विवाद हुआ कि उन दोनों में श्रेष्ठ कौन है, तब दोनों भगवान के भ्रम को समाप्त करने के लिए भगवान शिव एक महान ज्योति स्तंभ के रूप में प्रकट हुए, ब्रम्हा जी और विष्णु जी दोनो ही उस स्तंभ के आरंभ और अंत नहीं जान सके। इसी को ज्योतिर्लिंग कहते है।
उस वक़्त धरती पर कई ज्योतिर्लिंग प्रकट हुए थे। उनमें से प्रमुख 12 ज्योतिर्लिंग है। इन 12 स्थानों पर भगवान शिव स्वयं प्रकट हुए थे। बाद में शिव भक्तों ने इन स्थानों पर शिवलिंग स्थापित कर, भगवान शिव का भव्य मन्दिर निर्मित कराया। इन सभी ज्योतिर्लिंगों में सिर्फ महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग ही दक्षिणीमुखी है, बाकि सारे ज्योतिर्लिंग का मुख पूर्व दिशा की ओर है।
1. सोमनाथ-
दक्ष के श्राप से ग्रसित चंद्रदेव ने इस स्थान पर भगवान शिव को प्रसन्न किया था। बाद में इस जगह पर चंद्रदेव ने मन्दिर का निर्माण करवाया था, जिस वजह से इसे चंद्र के नाथ अर्थात सोमनाथ के नाम से जाना जाता है। सोमनाथ मंदिर को चंद्र देव ने सोने से, सूर्य देव ने रजत से और भगवान श्री कृष्ण ने लकड़ी से बनवाया था। यहाँ पर त्रिवेणी स्नान का विशेष महत्व है।
त्रिवेणी- तीन पवित्र नदियों हिरण,कपिला और सरस्वती का महासंगम
2. मल्लिकार्जुन-
जब कार्तिकेय जी भगवान शिव और माता पार्वती से रूष्ठ होकर दक्षिण चले गए, तब भगवान शिव और माता पार्वती उन्हें मनाने दक्षिण की ओर गये। जहाँ पर दक्षिण में भगवान शिव और माता पार्वती रूके थे, वहाँ पर मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग स्थापित है। यहाँ पर माता पार्वती ‘मल्लिका’ और भगवान शिव ‘अर्जुन’ के रूप में विराजमान है। इस प्रकार सम्मिलित रूप से वे श्रीमल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के नाम से यहाँ निवास करते है।
यही वजह है कि मल्लिकार्जुन, ज्योतिर्लिंग के साथ साथ शक्तिपीठ भी है। यह आन्ध्र प्रदेश में कृष्णा नदी के तट पर श्रीशैल नाम के पर्वत पर स्थित है। इस मंदिर को दक्षिण का कैलाश पर्वत कहा जाता है।
3. महाकाल-
क्षिप्रा नदी के किनारे बसे उज्जैन में भगवान शिव महाकालेश्वर के रूप में निवास करते है। महाकाल को उज्जैन का राजा कहा जाता है। उज्जैन की नगरी में ही गुरु सांदीपनी के आश्रम में भगवान श्री कृष्ण एवं बलराम विद्या प्राप्त करने हेतु आये थे।
4. ओंकारेश्वर-
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग खंडवा जिला(मध्य प्रदेश) में माँ नर्मदा नदी के तट पर, मन्धाता नाम के द्वीप पर स्थित है। यहाँ माँ नर्मदा दो भागों में बटकर ॐ के आकार में बहती है, इसलिए इसे ओंकारेश्वर नाम से जाना जाता है। ऐसी भी मान्यता है कि यहीं ॐ शब्द की उत्पत्ति भगवान बह्मा के मुख से हुई थी।
यहाँ शिव भगवान शयन करने आते हैं और शिव के साथ यहां माता पार्वती भी रहती हैं। माता पार्वती यहाँ शिवजी के साथ चौसर खेलती हैं। यही वजह है कि शयन आरती के बाद ज्योतिर्लिंग के पास चौसर की बिसात सजाई जाती है।
यहाँ भगवान शंकर दो रूप में विराजमान हैं, एक ओंकारेश्वर और दूसरे ममलेश्वर, दो ज्योतिर्लिंग के रूप में होने पर भी ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग को एक ही गिना जाता है।
5. केदारनाथ-
केदारनाथ हिमालय पहाड़ी पर मंदाकिनी नंदी के तट पर स्थित है। बहुत ज्यादा ठण्ड और बर्फबारी के कारण यह मंदिर साल में केवल 6 महीने अप्रैल से नवंबर माह तक ही खुलता है।
महाभारत के पश्चात जब पांडवों पर ब्रह्म हत्या का पाप लगा, तो पांडव काशी की ओर भगवान शिव की शरण में गये। पर ब्रह्म हत्या की वजह से भगवान शिव पांडवों से नाराज थे, अतः भगवान शिव काशी से चले गये।
भगवान शिव की खोज में पांडव हिमालय पर्वत पर केदारनाथ चले गए, जहाँ भगवान शिव भैस का रूप धर कर भैंसों के समूह में छिपे थे।
जब पांडवों ने भैंसों के समूह में भगवान शिव को पहचान लिया, तब भैस रूपी भगवान शिव धरती में समाने लगे। भगवान शिव को धरती में समाने से रोकने के लिए जब भीम ने भैस रूपी भगवान शिव को जोर से खिचा, तो भैस के कई टुकड़े हो गये। जहाँ पर भैस का सर गिरा, वहाँ आज पशुपति नाथ मंदिर है। यही वजह है कि पशुपति नाथ मंदिर में शिवलिंग सिर के आकार में है तथा केदारनाथ में शिवलिंग भैस की पीठ की आकार का है।
ऐसी मान्यता है कि केदारनाथ और पशुपति नाथ दोनों का दर्शन करने पर ही भगवान शिव का पशुपति रूप में दर्शन पूर्ण होता है।
6. भीमाशंकर-
सहाद्रि नामक पर्वत की हरि-भरी वादियों और भीमा नदी के उद्गम स्थल पर शिराधन गांव में स्थित इस मंदिर का शिवलिंग मोटा होने के कारण यह मोटेश्वर महादेव के नाम से भी जाना जाता है।
7. विश्वनाथ-
गंगा नदी के किनारे भगवान शिव के त्रिशूल पर विराजती काशी(मुक्ति का धाम) नगरी में विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग स्थित है।
यहाँ ज्योतिर्लिंग दो भागों में विभाजित है- ज्योतिर्लिंग के दायें भाग में माँ पार्वती और बाएं भाग में भगवान भोलेनाथ विराजमान है।
काशी विश्वनाथ में, विश्वनाथ(भगवान शिव) काशी के राजा है और काल भैरव उनके प्रहरी।
एक बार भगवान ब्रह्माजी और विष्णुजी के बीच चर्चा छिड़ गई कि आखिर कौन बड़ा और शक्तिशाली है। इस विवाद के बीच भगवान शिव की चर्चा हुई। जिसके दौरान ब्रह्माजी के पांचवें मुख ने भगवान शिव की आलोचना कर दी। ये सुनकर गुस्से में काल भैरव ने शिव के आलोचन करने वाले ब्रह्माजी के पांचवें मुख को काट दिया।
ब्रह्म हत्या की वजह से ब्रह्माजी के पांचवा मुख काल भैरव के हाथ से अलग ही नहीं हो रहा था। उस वक्त वहां शिव जी प्रक्रट हुए और काल भैरव से कहा, तुम्हे ब्रह्म हत्या का दोष लग गया है। इस दोष को मिटाने का एक ही तरीका है कि तुम तीनों लोकों का भ्रमण करो, जिस स्थान पर ब्रह्मा का ये पांचवां मुख तुम्हारे हाथ से छूट जाएगा, वहीं पर तुम इस पाप से मुक्त हो जाओगे।
तीनों लोकों का भ्रमण करते हुए जब भैरव बाबा काशी पहुंचे तो उनके हाथ से ब्रह्माजी का शीश अलग हो गया। इसी के साथ भैरव बाबा को काशी में ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति मिल गई। और इसके बाद भगवान शिव ने भैरव बाबा को काशी का कोतवाल बना दिया।
ऐसी मान्यता है कि काशी के राजा विश्वनाथ के दर्शन से पहले काशी के कोतवाल बाबा भैरव से अनुमति लेनी चाहिए।
इस मंदिर का जीर्णोद्धार 1780 में महारानी अहिल्या बाई होल्कर ने करवाया था। बाद में महाराजा रंजीत के द्वारा 1853 में सोने से इस मंदिर को बनवाया गया।
8. त्र्यंबकेश्वर-
गौतम ऋषि की प्रार्थना पर भगवान शिव यहाँ त्रयंबकेश्वर के रूप में निवास करते है।
महाराष्ट्र के नासिक ज़िले में गोदावरी नदी कें किनारे पर त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थित है। यहाँ पर मंदिर में तीन छोटे-छोटे शिवलिंग हैं- इन शिवलिंगो को ब्रह्मा, विष्णु और शिव के नाम से जाना जाता हैं।
9. वैद्यनाथ-
भगवान शिव को प्रसन्न करके जब रावण लंका में शिवलिंग स्थापित करने जा रहा था तो रास्ते में उसे लघुशंका लगी। तब रावण शिवलिंग एक ब्राह्मण को पकड़ा कर लघुशंका करने चल दिया।
जब रावण वापस आया तो उसने शिवलिंग को जमीन पर स्थापित पाया। बहुत प्रयत्नों के बाद भी जब रावण शिवलिंग को दुबारा नही उठा पाया तो शिवलिंग को वही छोड़ कर लंका चला गया। इस शिवलिंग की आज वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग के रूप में पूजा होती है।
10. नागेश्वर-
यही पर श्री द्वारकाधीश भगवान शिव का रुद्राभिषेक करते थे। भगवान शिव के सहस्र नामों में एक नाम नागेश्वर भी है, जिसका अर्थ नागों के ईश्वर अर्थात नागेश्वर है। इसलिए यहाँ भगवान शिव को ‘नागेश्वर’ और माता पार्वती ‘नागेश्वरी’ के रूप में पूजा जाता है।
11. रामेश्वरम-
रामेश्वर का अर्थ होता है राम के इश्वर अर्थात भगवान शिव। रामेश्वर शिवलिंग की स्थापना भगवान श्री राम ने लंका युद्ध से पूर्व किया था। इसकी स्थापना भगवान श्री राम ने कि थी इसलिए इसे रामेश्वरम के नाम से जाना जाता है।
12. घृष्णेश्वर-
घृष्णेश्वर या घुश्मेश्वर के नाम से भी प्रसिद्ध भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में यह अंतिम ज्योतिर्लिंग है। शिवभक्त घुश्मा की भक्ति के कारण भगवान शिव यहाँ स्वयं प्रकट हुए थे। यही वजह है यहाँ भगवान शिव घुश्मेश्वर महादेव के नाम से है।
इस मंदिर का नवनिर्माण अहिल्याबाई होल्कर ने करवाया था।
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