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गणेश चालीसा

इस चालीसा की रचना तुलसीदास ने की थी।  तुलसीदास द्वारा रचित प्रथम चालीसा- हनुमान चालीसा    ॥ दोहा ॥ जय गणपति सदगुण सदन, कविवर बदन कृपाल । विघ्न हरण मंगल करण, जय जय गिरिजालाल ॥ ॥ चौपाई ॥ जय जय जय गणपति गणराजू । मंगल भरण करण शुभः काजू ॥  1 जय गजबदन सदन सुखदाता । विश्व विनायक बुद्धि विधाता ॥ वक्र तुण्ड शुची शुण्ड सुहावन । तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन ॥ राजित मणि मुक्तन उर माला । स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला ॥ पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं । मोदक भोग सुगन्धित फूलं ॥ सुन्दर पीताम्बर तन साजित । चरण पादुका मुनि मन राजित ॥ धनि शिव सुवन षडानन भ्राता । गौरी ललन विश्व-विख्याता ॥ ऋद्धि-सिद्धि तव चंवर सुधारे । मुषक वाहन सोहत द्वारे ॥ कहौ जन्म शुभ कथा तुम्हारी । अति शुची पावन मंगलकारी ॥ एक समय गिरिराज कुमारी । पुत्र हेतु तप कीन्हा भारी ॥ भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा । तब पहुंच्यो तुम धरि द्विज रूपा ॥ अतिथि जानि के गौरी सुखारी । बहुविधि सेवा करी तुम्हारी ॥ अति प्रसन्न हवै तुम वर दीन्हा । मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा ॥ मिलहि पुत्र तुहि बुद्धि विशाला । बिना गर्भ धारण यहि काला ॥ गणनायक गुण ज्ञान न...

नवग्रह चालीसा

 जब आप की कुंडली में एक ही समय पर कई ग्रहो की दशा ख़राब हो, उस समय नवग्रह चालीसा का जाप आपको सभी संकट से उबार सकता है।  जिस किसी को भी ये नहीं पता है की उनके कुंडली में किस ग्रह की दशा खराब है वो नवग्रह चालीसा का जाप करे।  नवग्रह चालीसा की रचना महाकवि संत सुन्दरदास जी ने की थी। संत सुन्दरदास जी ने चालीसा की शुरुआत प्रथम पूज्य श्री गणेश को नमन पश्चात नौ ग्रहों को नमन करते हुए किया।  इसके बाद उन्होंने बारी बारी से सभी ग्रहो से शांति, समृद्धि एवं सुरक्षा का आशीर्वाद माँगा। नौ ग्रहो की अर्चना के बाद उन्होंने नवग्रह चालीसा के जाप उपरांत फल प्राप्ति का वर्णन करके आखिरी में नौ ग्रहो को धन्यवाद करते हुए नवग्रह चालीसा को पूर्ण किया।  ।। दोहा ।। श्री गणपति गुरुपद कमल, प्रेम सहित सिरनाय। नवग्रह चालीसा कहत, शारद होत सहाय।। जय जय रवि शशि सोम बुध जय गुरु भृगु शनि राज। जयति राहु अरु केतु ग्रह करहुं अनुग्रह आज।। ।। चौपाई ।।  ।। श्री सूर्य स्तुति ।। प्रथमहि रवि कहं नावौं माथा, करहुं कृपा जनि जानि अनाथा।  1 हे आदित्य दिवाकर भानू, मैं मति मन्द महा अज्ञानू। । अब निज जन कहं...

आतापी और वातापी की कथा

 प्राचीन काल में आतापी और वातापी नाम के दो दैत्य भाई दक्षिण भारत में निवास करते थे।  आतापी और वातापी दोनों ही मायावी दैत्य थे।  आतापी(ज्येष्ठ भ्राता)- किसी भी मृत व्यक्ति को आवाज दे कर जिन्दा करने की शक्ति  वातापी- कोई भी रूप धारण करने की शक्ति  दोनों मायावी दैत्य अपनी शक्ति के जरिये राहगीरों को लूटा करते थे। जब भी कोई राहगीर इनके क्षेत्र से गुजरता, आतापी उन्हें भोजन के लिए आमंत्रित करता।  भोजन से पूर्व वातापी बकरे का रूप धारण कर लेता। इसके बाद आतापी बकरे को काट कर उसका भोजन बनाता और यह भोजन राहगीर को देता। जब राहगीर दिया हुआ भोजन खा लेता, तब आतापी अपनी शक्ति से आवाज देकर वातापी को जीवित कर देता।  आतापी आवाज़ देता- वातापी अरे ओ वातापी बाहर आ जाओ। इस आवाज़ के बाद वातापी राहगीर का पेट चीर कर बहार आ जाता तथा राहगीर की मृत्यु के बाद आतापी और वातापी राहगीर की संपत्ति पर कब्ज़ा कर लेते। इस तरह से दोनों देत्यो ने कई राहगीरों को लूट कर अपार संपत्ति इकठ्ठा कर ली।  ऋषि अगस्त्य की कहानी  विदर्भ नरेश की पुत्री लोपामुद्रा से विवाह पश्चात, परिवार के भरण पोषण ...

संजीवनी मंत्र

आदि काल के दो महामंत्र --> महामृत्युंजय मंत्र एवं गायत्री मंत्र इन दोनों मंत्रो का जाप जीवन को समृद्व तथा तेजस्वी बनाता है।   गायत्री मंत्र(भगवान सवित्र /भगवान सूर्य की स्तुति )    ॐ भूर्भुवः स्वः । तत्सवितुर्वरेण्यं। भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात्। गायत्री मंत्र का अर्थ  प्राण देने वाले, दुखो का नाश करने वाले, सुख प्रदान करने वाले सूर्य स्वरुप श्रेष्ठ एव तेजस्वी भगवान  कर्मो का उद्धार करने वाले प्रभु में आपको नमन करता हूँ  (हे प्रभु) हमें बुद्धि और शक्ति प्रदान करे।  महामृत्युंजय मंत्र(भगवान शिव का मंत्र जो मृत्यु पर विजय प्रदान करता है ) ॐ हौं जूं स: ॐ भूर्भुव: स्व:  ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्  उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्  ॐ स्व: भुव: भू: ॐ स: जूं हौं ॐ !! महामृत्युंजय मंत्र का अर्थ  (मंत्र) ॐ हौं जूं स: ॐ भूर्भुव: स्व:  उस त्रिनेत्र शिव को प्रणाम जो सुगंधित जीवन का संचार करते है  हमें मृत्यु के बंधन से मुक्त कर अमरता प्रदान करे  (मंत्र) ॐ स्व: भुव: भू: ॐ स: जूं ह...

पंचमुखी हनुमान

 सबको संकट से उबारने वाले संकटमोचन हनुमान का एक रूप है पंचमुखी हनुमान, जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते है।  तो आइये जाने क्या है पंचमुखी हनुमान की कथा।                                                             ( यादगिरिगुट्टा,  तेलंगाना ) रावण को जब युद्ध में अपनी पराजय दिखने लगी, तो उसने अपने भाई अहिरावण (पाताल के राजा) से मदद माँगी।  अपने भाई की मदद हेतु अहिरावण छल के जरिये भगवान राम और लक्ष्मण को पाताल लोक ले कर चला गया। पाताल लोक में वो भगवान राम और लक्ष्मण की बलि चढ़ाने की तैयारी करने लगा।  हनुमान जी को जब इस बात का पता चला तो वो पाताल लोक के लिए रवाना हो गये। पाताल लोक रवाना होने से पहले विभीषण ने हनुमान जी को बताया की अहिरावण की शक्तियाँ पांच दीपको में है। जो इन पाँचो दीपको को एक साथ बुझायेगा वही अहिरावण को मार सकता है।  पाताल लोक में आने के बाद एक जगह पर हनुमान जी को पाँच दीपक दिखे। चार दीपक चा...

Types of Vaccines

Lecture 4 Types of Vaccine Whenever an Antigen(Foreign agent- bacteria, virus, fungi, etc.) attacks our body, Antibody Fought war against the Antigen.   In other words- Antibody is the army of our body. And the job of the vaccine is to train antibodies about the weakness of foreign invaders(Antigen). Vaccines did not fight with foreign invaders, they just trained our antibodies to fight against antigen. Vaccines play the role of a trainer. In corona time you may encounter different terms like- mRNA vaccine, Conjugated vaccine, inactive vaccine etc. In this post we will clarify all types of vaccines. There are two types of vaccine based on targeted action point- 1. Antigen vaccine- The vaccine trains our antibody to fight against antigen 2. Toxoid vaccine-   The vaccine trains our antibodies to fight against the weapon of antigen. The main target of the antibody was not the antigen but the toxin product released by antigen. Toxoid vaccine- Tetanus vaccine(caused by bacter...

दशावतार श्रीहरि विष्‍णु

 दशावतार श्रीहरि विष्‍णु धर्म की रक्षा हेतु श्रीहरि विष्‍णु ने हर काल में अवतार लिया। भगवान श्रीहरि विष्णु के 10 अवतार सतयुग(5)- मत्स्य अवतार, हयग्रीव अवतार, कूर्म अवतार, वराह अवतार, नरसिंहावतार त्रेता युग(3)- वामनावतार, परशुरामावतार, रामावतार द्वापर युग(1)- कृष्णावतार कलियुग (1)- कल्कि अवतार भगवान विष्णु के सतयुग अवतारों को समझने के लिये राक्षसो की उत्पत्ति समझना जरूरी है।  ब्रह्मा ने 10 ऋषियों की रचना की। जिसमे से दो प्रमुख ऋषि- ऋषि मरीचि और ऋषि दक्ष  ऋषि मरीचि के पुत्र थे ऋषि कश्यप।  ऋषि दक्ष की कई पुत्रिया हुयी - 13 पुत्रियों की शादी ऋषि कश्यप से, 27 पुत्रियों की शादी चंद्र देव से तथा माता सती की शादी शिवा से।  ऋषि कश्यप + अदिति (दक्ष पुत्री) --> सुर/देव पुत्र --> सूर्य, अग्नि, वरुण, इंद्र, वामनावतार  ऋषि कश्यप + दिति (दक्ष पुत्री) --> असुर पुत्र --> हिरण्याक्ष और हिरणाकश्यप  ऋषि कश्यप + दानू(दक्ष पुत्री) --> असुर पुत्र --> हयग्रीव  हयग्रीव(अश्व) नाम के राक्षस ने माँ भगवती से अमरता का वरदान माँगा। अमरता का वरदान मना करने...