आदि काल के दो महामंत्र --> महामृत्युंजय मंत्र एवं गायत्री मंत्र
इन दोनों मंत्रो का जाप जीवन को समृद्व तथा तेजस्वी बनाता है।
गायत्री मंत्र(भगवान सवित्र /भगवान सूर्य की स्तुति )
ॐ भूर्भुवः स्वः ।
तत्सवितुर्वरेण्यं।
भर्गो देवस्य धीमहि।
धियो यो नः प्रचोदयात्।
गायत्री मंत्र का अर्थ
प्राण देने वाले, दुखो का नाश करने वाले, सुख प्रदान करने वाले
सूर्य स्वरुप श्रेष्ठ एव तेजस्वी भगवान
कर्मो का उद्धार करने वाले प्रभु में आपको नमन करता हूँ
(हे प्रभु) हमें बुद्धि और शक्ति प्रदान करे।
महामृत्युंजय मंत्र(भगवान शिव का मंत्र जो मृत्यु पर विजय प्रदान करता है )
ॐ हौं जूं स: ॐ भूर्भुव: स्व:
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्
ॐ स्व: भुव: भू: ॐ स: जूं हौं ॐ !!
महामृत्युंजय मंत्र का अर्थ
(मंत्र) ॐ हौं जूं स: ॐ भूर्भुव: स्व:
उस त्रिनेत्र शिव को प्रणाम जो सुगंधित जीवन का संचार करते है
हमें मृत्यु के बंधन से मुक्त कर अमरता प्रदान करे
(मंत्र) ॐ स्व: भुव: भू: ॐ स: जूं हौं ॐ !!
गायत्री मंत्र- जीवन को तेजस्वी यशस्वी बनाने के लिए
महामृत्युंजय मंत्र- मृत्यु से मुक्ति के लिए
आदिकाल में ऋषियों ने इन दोनों मंत्रो को मिलकर एक मंत्र की रचना की, जिससे की दोनों मंत्रो का फल प्राप्त हो
ॐ हौं जूं स: ॐ भूर्भुव: स्व: ॐ त्रयंबकंयजामहे
ॐ तत्सर्वितुर्वरेण्यं ॐ सुगन्धिंपुष्टिवर्धनम्
ॐ भर्गोदेवस्य धीमहि ॐ उर्वारूकमिव बंधनान्
ॐ धियो योन: प्रचोदयात ॐ मृत्योर्मुक्षीय मामृतात
ॐ स्व: ॐभुव: ॐ भू: ॐ स: ॐ जूं हौं ॐ
इस मंत्र को संजीवनी मंत्र के नाम से जाना जाता है।
क्यों इसे संजीवनी मंत्र के नाम से जानते है ?
ये जानने के लिए ऋषि शुक्राचार्य की कहानी जाननी जरूरी है।
ऋषि शुक्राचार्य महर्षि भृगु और दिव्या(हिरण्यकश्यपु की पुत्री) के संतान थे। जब शुक्राचार्य थोड़े से बड़े हुए तो उनके पिता ने उन्हें ब्रम्हऋषि अंगऋषि के पास शिक्षा के लिए भेज दिया।
ऋषि शुक्राचार्य और ऋषि बृहस्पति(अंगऋषि के पुत्र) दोनों ही अंगऋषि के शिष्य थे। ऋषि शुक्राचार्य के श्रेष्ठ होने के बाद भी ज्यादा सम्मान ऋषि बृहस्पति को मिलता था।
इस बात पर ऋषि शुक्राचार्य ने अंगऋषि का आश्रम छोड़ दिया तथा बाकी की शिक्षा सनकऋषि और गौतम ऋषि से ली।
गौतम ऋषि की सलाह पर ऋषि शुक्राचार्य ने शिव की कठोर तपस्या कर मृतसंजीवनी विद्या प्राप्त की।
मृतसंजीवनी विद्या- जिसके जरिये मृत को भी जीवित किया जा सके।
जब देवताओ ने ऋषि बृहस्पति को गुरु नियुक्त किया, तब ऋषि शुक्राचार्य देत्यो के गुरु बने।
ऋषि शुक्राचार्य के मृतसंजीवनी विद्या के जरिये दैत्यों ने बार बार देवताओं को युद्ध में परास्त किया।
युद्ध में जो भी दैत्य मरता उसे ऋषि शुक्राचार्य मृतसंजीवनी विद्या से जिन्दा कर देते। ऋषि शुक्राचार्य मृतसंजीवनी विद्या के दौरान इस मंत्र का उच्चारण करते थे।
ॐ हौं जूं स: ॐ भूर्भुव: स्व: ॐ त्रयंबकंयजामहे
ॐ तत्सर्वितुर्वरेण्यं ॐ सुगन्धिंपुष्टिवर्धनम्
ॐ भर्गोदेवस्य धीमहि ॐ उर्वारूकमिव बंधनान्
ॐ धियो योन: प्रचोदयात ॐ मृत्योर्मुक्षीय मामृतात
ॐ स्व: ॐभुव: ॐ भू: ॐ स: ॐ जूं हौं ॐ
तभी से इस मंत्र को संजीवनी मंत्र या मृतसंजीवनी मंत्र के नाम से जाना जाता है।
वही गरुण पुराण में यक्षि ओम उं स्वाहा को संजीवनी मंत्र बताया गया है।
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