रात भर हरीश करवटे लेता हुआ इसी सोच में था की कहाँ से कुछ पैसो का इंतज़ाम किया जाय। उधारी पहले से ही इतनी थी की और उधार माँगने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था और गर्भवती पत्नी की हालत देखते नहीं बनती। बस एक ही ख्याल आता था उसे की गरीब को पिता बनने का कोई हक़ नहीं है। पर राखी को तो बच्चे की चाहत थी। वो बच्चे को सीने से लगाकर मातृत्व सुख का अनुभव करना चाहती थी। राखी की इस चाहत ने हरीश के पैरो तले जैसे जमीन ही खींच ली हो।
सुबह होते ही हरीश शिव मंदिर को चला गया। और एक दीवार से टेक लगाकर बैठ गया। दिन भर सिर्फ ये सोचता रहा की किस तरह राखी को अस्पताल में दाखिल करवाये। हरीश अपनी सोच में इतना खो गया की ये भी भूल गया आज फसल काटने की दिन है और कल सुबह ही फसल को सरकारी गोदाम में पहुंचना है।
थक हार के हरीश शाम को घर वपास लौट आया। और खाना बनाने की तैयारी में जुट गया। आज तो आलू भी ऐसे कट रहे थे जैसे प्याज़ कट रहा हो। खाना बनाने के बाद एक थाली में अपनी माँ को और दूसरी में राखी को खाना दे आया। राखी के मना करने पर, बड़े प्यार से राखी को अपने हाँथो से खाना खिलाया। रात को बर्तन धोने के बाद हरीश बिस्तर पे लेट गया। कल रात की तरह इस रात भी हरीश बेचैनी में करवटे लेता रहा। और सुबह होते ही खेत पर निकल गया।
रास्ते में हर खेत की फसल कटी हुई देखकर उसे याद आया की आज तो फसल सरकारी गोदाम में पहुंचना था। और उसने देर कर दी। अब तो बस एक ही चारा था की सस्ते दामों में फसल मुनिम को बेच दी जाए। ये सब सोच कर हरीश का शरीर सुन्न सा पड़ गया। फसल को खेतों में छोड़ कर हरीश वापस घर लौट आया। हरीश की मुश्किलें बढ़ती ही जा रही थी।
ठीक उसी रात सरकारी गोदाम में आग लग गयी। सारी इकट्ठा की हुई फसल जल कर ख़ाक हो गयी। अब पूरे गाँव में सिर्फ हरीश की फसल बची थी और खरीदार काफी ज्यादा थे।
हरीश को उसके फसल की अच्छी खासी कीमत मिली, जिससे उसने राखी को अस्पताल में भर्ती करवा दिया। और होने वाले बच्चे के लिए खिलौने वग़ैरहा भी ख़रीदे।
सुबह होते ही हरीश शिव मंदिर को चला गया। और एक दीवार से टेक लगाकर बैठ गया। दिन भर सिर्फ ये सोचता रहा की किस तरह राखी को अस्पताल में दाखिल करवाये। हरीश अपनी सोच में इतना खो गया की ये भी भूल गया आज फसल काटने की दिन है और कल सुबह ही फसल को सरकारी गोदाम में पहुंचना है।
थक हार के हरीश शाम को घर वपास लौट आया। और खाना बनाने की तैयारी में जुट गया। आज तो आलू भी ऐसे कट रहे थे जैसे प्याज़ कट रहा हो। खाना बनाने के बाद एक थाली में अपनी माँ को और दूसरी में राखी को खाना दे आया। राखी के मना करने पर, बड़े प्यार से राखी को अपने हाँथो से खाना खिलाया। रात को बर्तन धोने के बाद हरीश बिस्तर पे लेट गया। कल रात की तरह इस रात भी हरीश बेचैनी में करवटे लेता रहा। और सुबह होते ही खेत पर निकल गया।
रास्ते में हर खेत की फसल कटी हुई देखकर उसे याद आया की आज तो फसल सरकारी गोदाम में पहुंचना था। और उसने देर कर दी। अब तो बस एक ही चारा था की सस्ते दामों में फसल मुनिम को बेच दी जाए। ये सब सोच कर हरीश का शरीर सुन्न सा पड़ गया। फसल को खेतों में छोड़ कर हरीश वापस घर लौट आया। हरीश की मुश्किलें बढ़ती ही जा रही थी।
ठीक उसी रात सरकारी गोदाम में आग लग गयी। सारी इकट्ठा की हुई फसल जल कर ख़ाक हो गयी। अब पूरे गाँव में सिर्फ हरीश की फसल बची थी और खरीदार काफी ज्यादा थे।
हरीश को उसके फसल की अच्छी खासी कीमत मिली, जिससे उसने राखी को अस्पताल में भर्ती करवा दिया। और होने वाले बच्चे के लिए खिलौने वग़ैरहा भी ख़रीदे।
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