दोपहर के 1 बजे, हबीब अचनाक ऑफिस से निकलकर तेजी से टैक्सी स्टैंड की तरफ बढ़ता है. टैक्सी स्टैंड खाली पाकर वापस सड़क की तरफ लौटकर आने जाने वाले टैक्सी को हाँथ देकर रोकने की कश्मकश। हर आने वाली टैक्सी की तरफ उम्मीद से देखना और खुद की तरफ बढ़ते देखकर बैचेन होना। इन सबके बाद टैक्सी का यूँ गुजर जाना जैसे हबीब वहाँ हो ही नहीं। हबीब की पलके भीग चुकी थी। बड़ी मशकत के बाद एक टैक्सी रुकी। हबीब ने टैक्सी वाले से घंटाघर जाने के लिए पुछा। टैक्सी वाले ने ना में सर हिलाते हुए हबीब की तरफ देखा और अचानक हाँ बोल दिया। टैक्सी वाले से भी हबीब की बैचेनी देखी नहीं गयी। हबीब टैक्सी में सवार हो गया।
टैक्सी घंटाघर की तरफ रवाना हो चुकी थी। हबीब का हर पल घड़ी की तरफ देखना, फिर रास्तें की तरफ देखना, टैक्सी वाले को भी बैचेन कर दिया था।
15 मिनट गुजरने के बाद टैक्सी भीमशंकर चौराहे पर पहुंची। जहाँ हमेशा की तरह जाम था। जाम को देखकर हबीब का चेहरा ही पिला पड़ गया। हबीब को कुछ समझ नहीं आ रहा था की वो आखिर करे तो क्या। हड़बड़ाहट में टैक्सी वाले को 500 का नोट देकर, सड़क के किनारे दौड़ने लगा।
ठीक उसी वक़त मंत्री जी की गाड़ी उधर से गुजारी। ट्रैफिक पुलिस की तो हालात ख़राब हो गयी। सभी गाड़ी को रोककर मंत्री जी की गाड़ी निकलवाने में जुट गया। इतने में मंत्री जी की नजर हबीब पर पड़ी। पसीने से लथपथ और आंसुओं के साथ रोड पर दौड़ाता हुआ। मंत्री जी ने हबीब को अपनी ओर आने का इशारा किया। पर हबीब तो किसी और ध्यान में खोया हुआ था। मंत्री जी ने फिर एक पुलिस वाले से हबीब को रोकने को कहा। मंत्री जी ने हबीब से बात की और फिर हबीब को अपनी गाड़ी में ले गए। मंत्री जी ने ड्राइवर से गाड़ी घंटाघर की तरफ लेने को कहा। मंत्री जी ने हबीब को घंटाघर के चौराहे पर पंहुचा दिया। गाड़ी से उतर कर हबीब ने चारो तरफ देखना शुरू किया। फिर एक और जिधर एक बुढ़िया एक छोटी सी बच्ची को गोद में लेकर बैठी थी, मुन्नी बोल कर उस ओर दौड़ चला। बुढ़िया ने आव देखा ना ताव बच्ची को वही पटकर दौड़ ली। पटकने से बच्ची के हाथ पैर में खरोच और सर पर कुछ चोट लगी। पर बच्ची जो पहले से ही बेहोश थी, उसे कहा इस चोट का दर्द।
दर्द का एहसास तो हबीब को हो रहा था। उसने बच्ची को गोद में उठा लिया। बच्ची के चोट देखकर दर्द तो था, पर उससे ज्यादे इस बात का सुकून था की उसे उसकी खोयी बेटी वापस तो मिल गयी।
टैक्सी घंटाघर की तरफ रवाना हो चुकी थी। हबीब का हर पल घड़ी की तरफ देखना, फिर रास्तें की तरफ देखना, टैक्सी वाले को भी बैचेन कर दिया था।
15 मिनट गुजरने के बाद टैक्सी भीमशंकर चौराहे पर पहुंची। जहाँ हमेशा की तरह जाम था। जाम को देखकर हबीब का चेहरा ही पिला पड़ गया। हबीब को कुछ समझ नहीं आ रहा था की वो आखिर करे तो क्या। हड़बड़ाहट में टैक्सी वाले को 500 का नोट देकर, सड़क के किनारे दौड़ने लगा।
ठीक उसी वक़त मंत्री जी की गाड़ी उधर से गुजारी। ट्रैफिक पुलिस की तो हालात ख़राब हो गयी। सभी गाड़ी को रोककर मंत्री जी की गाड़ी निकलवाने में जुट गया। इतने में मंत्री जी की नजर हबीब पर पड़ी। पसीने से लथपथ और आंसुओं के साथ रोड पर दौड़ाता हुआ। मंत्री जी ने हबीब को अपनी ओर आने का इशारा किया। पर हबीब तो किसी और ध्यान में खोया हुआ था। मंत्री जी ने फिर एक पुलिस वाले से हबीब को रोकने को कहा। मंत्री जी ने हबीब से बात की और फिर हबीब को अपनी गाड़ी में ले गए। मंत्री जी ने ड्राइवर से गाड़ी घंटाघर की तरफ लेने को कहा। मंत्री जी ने हबीब को घंटाघर के चौराहे पर पंहुचा दिया। गाड़ी से उतर कर हबीब ने चारो तरफ देखना शुरू किया। फिर एक और जिधर एक बुढ़िया एक छोटी सी बच्ची को गोद में लेकर बैठी थी, मुन्नी बोल कर उस ओर दौड़ चला। बुढ़िया ने आव देखा ना ताव बच्ची को वही पटकर दौड़ ली। पटकने से बच्ची के हाथ पैर में खरोच और सर पर कुछ चोट लगी। पर बच्ची जो पहले से ही बेहोश थी, उसे कहा इस चोट का दर्द।
दर्द का एहसास तो हबीब को हो रहा था। उसने बच्ची को गोद में उठा लिया। बच्ची के चोट देखकर दर्द तो था, पर उससे ज्यादे इस बात का सुकून था की उसे उसकी खोयी बेटी वापस तो मिल गयी।
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