मल्हारों का जीवन भी कोई जीवन था। यमुना के पार आने-जाने वाले राहगीरों से 2 रु लेकर नदी पार करवाते थे। बड़ी मुश्किल से दिन में 50-100 सवारी और दिन के 100-200 रु। दो वक़्त की रोटी का जुगाड़ भी बड़ी मुश्किल से होता था। और मल्हारों के लिए क्या होली और क्या दीपावली। जिस दिन किसी मल्हार की तबियत ख़राब होती, उस दिन उसके घर का चूल्हा ठंडा पड़ जाता। कुल मिलाकर उनके पास जो कुछ भी था वो थी उनकी कश्ती, जिससे उनका जीवन यापन होता था। और इस जीविका पर भी कभी कभी बारिश का कहर बरस जाता था। बरसात के मौसम में सवारी भी कम और तेज़ बारिश में कश्ती डूबने का खतरा भी। उच्च वर्ग से बहिष्कृत, एक दूसरे का सुख दुःख बाटते हुए, मल्हार बस्ती ही उनकी सारी दुनिया थी। यमुना किनारे की ऐसी ही एक मल्हार बस्ती में मंत्री जी का दौरा और बरसात का मौसम। पूरी बस्ती में कच्चे मकान और कीचड़ से सनी हुयी गलियाँ थी। बड़ी मुश्किल से एक दो तल्ला पक्का मकान दिखा। मंत्री जी के मालूम करने पर पता चला की मकान जल निगम के बाबू राजू का है। राजू के आलावा बस्ती के सभी लोग अनपढ़ थे और बस कस्ती खेकर ही अपना जीवन यापन करते थे। थोड़ा समझदार देखकर मंत्री जी ने राजू से बस्ती की समस्या पर चर्चा की। ज्यादातर समस्या प्राकृतिक होने की वजह से मंत्री जी भी निश्चल से थे। फिर भी मंत्री जी का दौरा और बस्ती के लिए कुछ ना करे तो पार्टी की तो थू थू हो जाती। बहुत गहन विचार करने के बाद आख़िरकार मंत्री जी को सफाई का मुद्दा मिल ही गया। राजू ने भी बच्चो की क्रीड़ा के लिए पास ही के खाली जमीन पर पार्क बनवाने का सुझाव दिया। मंत्री जी भी इस बात से भली-भाँति अवगत थे की शायद ही बस्ती के किसी बच्चे ने पार्क देखा होगा। मंत्री जी के दौरे को दो महीने बीत चुके थे। बस्ती में कचरा फेकने हेतु वयवस्था कर दी गयी थी। और नगर निगम ने पार्क स्थल की सफाई एवं चारदीवारी कर इसे सुसज्जित कर दिया था। आधे अधूरे पार्क की भी शोभा इतनी थी की हर मल्हार दिन में एक दफा इस ओर हो गुजरता था। पार्क निर्माण के साथ राजू पूरी बस्ती में और भी चर्चित हो गया। मानो जैसे बस्ती का दुलारा हो। बस्ती के हालात बदल गए थे। बच्चो के क्रीड़ा हेतु पार्क और कचरा फेकने हेतु वयवस्था थी। मगर ये क्या बस्ती में कचरा फेकने हेतु वयवस्था होने के बावजूद राजू अपने घर का कचरा भूमिया मल्हार के द्धार पर फेकता। राजू उसे अक्सर नीचा दिखाने की भरकस कोशिश करता। भूमिया के कुछ बोलने पर राजू उच्ची आवाज में चिल्लाने लगता। बस्ती वाले इकटठा भी होते तो, जरूर भूमिया की गलती होगी बोल कर भूमिया को दबा देते। धीरे-धीरे भूमिया बस्ती वालो की आँखों में खटकने लगा। उच्च वर्ग से पहले से ही बहिष्कृत, अब मल्हारों के बीच भी भूमिया अकेला था। भूमिया ने भी वक़्त के साथ-साथ इसे स्वीकार कर लिया और वक़्त गुजरता रहा। गर्मी का मौसम आ गया था। रविवार दोपहर का वक़्त, गर्मी से झुँझलाकर बच्चे यमुना नदी के ठंडे पानी का लुफ्त उठा रहे थे। अचनाक बादलो की काली घटा छायी। ऐसा प्रतीत होने लगा जैसे की कोई काली रात हो। यमुना ने भी उफान भरना शुरू कर दिया। मानो जैसे बदलो और यमुना के बीच जंग छिड़ गयी हो। बड़ा ही भयावक मंजर था। यमुना का तूफ़ान तेजी से बढ़ते हुए भयावह रूप ले रहा था। बच्चे भी डर कर नदी के छोर की तरफ बढ़ने लगे। तट पर पहुंच कर सब यमुना के भयावह दृश्य को एक टक देखने लगे। की अचनाक उन्हें चीखने की आवाज सुनाई दी। आवाज की तरफ देखा तो 10 साल का श्याम यमुना के उफानो में फसकर जिंदगी के लिए जंग लड़ रहा था। हालत ऐसी थी की जैसे बस साँस छूटने वाली हो। बादलो की नजाकत को देखकर सभी मल्हार किंकमूड़ दर्शक बन गए। किसी ने भी नदी की ओर जाने की हिम्मत ना की, उस वक़्त भूमिया ने आव देखा ना ताव बस कश्ती लेकर श्याम की तरफ बढ़ गया। श्याम को अपनी तरफ खीच कर उफान से कुछ दूर ही बढ़ा था की बादलो ने तेजी से बरसना शुरू कर दिया। कश्ती बारिस से भरने लगी। इसी बीच भूमिया ने गमछे से श्याम को अपनी पीठ पर बांध लिया। बारिस ने कश्ती को डूबा दिया, पर भूमिया श्याम को अपनी पीठ पर बांध कर तैरते हुए किनारे पर पहुंच गया था। भूमिया तेजी से श्याम के पैरो को रगड़ने लगा। श्याम ने जब आँखे खोली तो चारो तरफ से लोगो से घिरा हुआ था। श्याम के आँखे खोलने पर भूमिया ने राहत की साँस ली। फिर कुछ सोच कर वापिस यमुना की तरफ मुड़ा। इतनी देर में बस्ती के सभी लोग यमुना तट पर इकट्ठ्ठा हो गए थे। भूमिया यमुना से अपने रोजी-रोटी के सवालो में उलझ गया। की जिस नदी ने आज तक उसे पाला, आज उसने अचानक उसे लूट कैसे लिया। भूमिया कुछ सोच नहीं पा रहा था की कल से वो आखिर क्या करेगा। सारी रात सोच विचार करने के बाद भी, कुछ समझ नहीं आ रहा था की आखिरकार करे तो क्या। भोर 5 बजे बैचेनी से सामान को गठरी में बाँधते हुए, बस्ती छोड़ने का निर्णय ले लिया। ये भी नहीं सोचा कहाँ जाएँ, क्या करे ? बस सामान की गठरी लेकर बस्ती छोड़ने को तैयार। नाउम्मीदगी से झुकी नजरो के साथ, दरवाजे की कुंडी खोलकर कुछ ही कदम बड़ा था की उसे अपने सामने किसी के कदम दिखाई दिए। नजरे उठायी तो वो राजू था। आँखे नम और हाँथ जुड़े हुए। फिर चारो ओर देखा तो बस्ती के लोग भूमिया के घर के पास खड़े थे। भूमिया ने राजू को गले से लगा लिया। श्याम जो राजू के पास ही खड़ा था, भूमिया की ऊँगली पकड़कर उसे एक और खीचने लगा। भीड़ को चीर कर जब भूमिया एक ओर पंहुचा तो उसकी पलके भीगने लगी, उसके सामने एक कस्ती थी।
Every Archadian were looking towards the sky in the hope of sunset and with every passing moment they were afraid of lose. Their fear made them more weak and they lost more life in battle field in-front of large Valvan army. The field was full of blood surrounded by hill on one side and forests from another side. Rest of the two sides covered with two army in front of each other. Archadian vs Valvan The Valvan get more aggressive with their swords flying in the battle field. Finally with sunset, drum sound spread all over the field and war was at end. With sunset over the hills, darkness spread in the field and blood became more red in absence of sun. Alkan, the arrogant Valavn king, ask his solider to return back to tent leaving behind injured and dead Valvan solider in field. Both the army headed towards their tent leaving blood on the earth of Archadians. The Valvan get busy in celebrating their victory in today's battle field. While in Archadian tent, king Arithm order a...
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