सियासत के मैदान में
दल बदलते ईमान है
सब के सब चोर है बैठे
खुद को कहते जो महान है
दल बदलते ईमान है
सब के सब चोर है बैठे
खुद को कहते जो महान है
लूट रही जनता है भोली
बेईमानो की ये दास्तान है
घोटालो के पन्नों में
लिखे इनके अरमान है
भूखी जनता झोपड़ो में
महलों में इनके पकवान है
चुनावी मेढ़क है सारे
टर टर इनके ज़बान है
सियासत का घमासान है
दल बदलते ईमान है
नेता जन की पार्टी ना पूछो
जहाँ मौका वही पहलवान है
लक्ष्मण तो कोई बचा नहीं
विभीषण सारे महान है
पैसो में बिक रहे
नेता के गुणगान है
गिरगिट भी हैरान है
देख रंग इतने परेशान है
बैठा है सोच में इस
की सियासत अब्बा जान है
सियासत का घमासान है
दल बदलते ईमान है ......
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