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संपूर्ण बुध कथा

 बुध पीले रंग की पुष्पमाला तथा पीला वस्त्र धारण करते हैं। उनके शरीर की वर्ण कनेर के पुष्प की भाँती है।

बुद्ध को एक शुभ ग्रह एवं बुद्धि का देवता माना जाता है।  बुध ग्रह का सूर्य और शुक्र के साथ मित्र भाव तथा चंद्रमा से शत्रुतापूर्ण भाव है। बुध ग्रह का अन्य ग्रहों के प्रति सामान्य भाव है। यह ग्रह बुद्धि, बुद्धिवर्ग, संचार, विश्लेषण, चेतना (विशेष रूप से त्वचा), विज्ञान, गणित, व्यापार, शिक्षा और अनुसंधान का प्रतिनिधित्व करता है। सभी प्रकार के लिखित शब्द और सभी प्रकार की यात्राएं बुध के अधीन आती हैं।

हरे रंग, धातु, कांसा और रत्नों में पन्ना बुद्ध की प्रिय वस्तुएं हैं। इनके साथ जुड़ी- दिशा उत्तर(ईशानकोण) है, मौसम शरद ऋतु और तत्व पृथ्वी है।

जिनके कुंडली में बुध मजबूत होता है वो व्यपार और नौकरी में तरक्की करते है।


बुध मंत्र

ॐ ब्रां ब्रीं ब्रौं स: बुधाय नम:

ॐ बुं बुधाय नम:


बुध जन्म कथा

 महर्षि अत्रि और देवी अनुसूया के पुत्र चंद्र देव शिक्षा के लिए ऋषि बृहस्पति देव को अपना गुरु बनाया। बृहस्पति की पत्नी तारा चंद्र देव  की सुंदरता पर मोहित होकर उनसे प्रेम करने लगी। तदोपरांत वह चंद्रमा के संग सहवास भी कर गई एवं बृहस्पति को छोड़ ही दिया। बृहस्पति के वापस बुलाने पर तारा ने वापस आने से मना कर दिया, जिससे बृहस्पति क्रोधित हो उठे। तब बृहस्पति एवं उनके शिष्य चंद्र के बीच युद्ध आरंभ हो गया। इस युद्ध में असुरो के गुरु शुक्राचार्य चंद्रमा की ओर हो गये और अन्य देवता बृहस्पति के साथ हो लिये। धीरे धीरे युद्ध बड़े स्तर पर होने लगा। क्योंकि यह युद्ध तारा की कामना से हुआ था, अतः यह तारकाम्यम कहलाया। देवताओं के इस युद्ध से सृष्टिकर्त्ता ब्रह्मा को भय हुआ कि ये कहीं पूरी सृष्टि ही तबाह ना हो जाए, तो वे बीच बचाव कर इस युद्ध को रुकवाने का प्रयोजन करने लगे। उन्होंने तारा को समझा-बुझा कर चंद्र से वापस लिया और बृहस्पति को सौंप दिया। इस बीच तारा ने एक सुंदर पुत्र को जन्म दिया जो बुध कहलाया। चंद्र और बृहस्पति दोनों ही बुध को अपना पुत्र बताने लगे परन्तु तारा इस पर चुप ही रही। बुध देव के बड़े होने पर स्वयं बुध ने माता से सत्य बताने को कहा। तब तारा ने चंद्र देव को बुध का पिता बताया।

बुध को अपने जन्म की कथा सुनकर शर्म व ग्लानि होने लगी। वह हिमालय के श्रवणवन पर्वत पर जाकर तपस्या करने लगे। उनके तप से प्रसन्न होकर विष्णु भगवान ने उन्हें दर्शन दिया तथा वरदान स्वरूप वैदिक विद्याएं एवं सभी कलाएं प्रदान कीं।

ब्रह्मा जी ने इनकी योगयता को देखकर इन्हे भूतन का स्वामी तथा ग्रह बना दिया।

इनका विवाह मनु पुत्री इला के साथ हुआ है।


इला कथा एवं बुध विवाह

संतान की प्राप्ति के लिए मनु और श्रद्धा ने पुत्र कामेष्टि यज्ञ कराया। यज्ञ के जरिये वरूण देव को प्रसन्न करने के दौरान कुछ गलती हो गयी जिस कारण वरुण देव ने पुत्र का लिंग परिवर्तित कर उसे पुत्री बना दिया।

इस तरह श्रद्धा के गर्भ में पुत्री आ गईं। पति-पत्नी ने मित्र वरुण से क्षमा याचना की और यज्ञ से प्रसन्न कर उनसे गर्भस्थ शिशु का लिंग परिवर्तित कराया।

श्रद्धा के गर्भ से सुदुयम्न नामक पुत्र का जन्म हुआ। सुदुयम्न एक दिन शिकार के पीछे भागते भागते अम्बिका वन में चले गये।

उस वन में देवी की माया से शिव के अतिरिक्त कोई और पुरुष प्रवेश नहीं करता था। यदि गलती से कोई पुरुष अम्बिका वन में प्रवेश कर जाता तो वह देवी के शाप से स्त्री बन जाता था।

शाप की वजह से सुदुयम्न स्त्री बनकर भटकने लगा।

सुदुयम्न स्त्री स्वरूप से बहुत दुखी था। उसने शिव और पार्वती से बार-बार क्षमा मांगी और उसे पुरुष बनाने की विनती की। तब महादेव ने बताया कि यह अनायास नहीं हुआ। उसके पिता द्वारा देवों पर दबाव बनाकर विधि के विधान से खिलवाड़ कर उसे स्त्री से पुरुष बनाने की चेष्टा का परिणाम है।

सुदुयम्न स्त्री रूप में इला बन कर वन में भटकने लगा। उसी समय इला पर बुध की नजर पड़ी और वह इला पर मोहित हो गए। उन्होंने इला से विवाह की इच्छा प्रकट की। इला भी अद्वितीय सुंदर पुरुष बुध पर रीझ गई। तदोपरांत बुध और इला का विवाह हो गया।

कुछ वर्ष बाद इला ने पुरूरवा को जन्म दिया। जिसने चंद्रवंश को आगे बढ़ाया। बाद में इसी कुल में भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लिया।

बुध के आश्रम में स्त्री बने इला को वर्षों बीत गए। एक दिन इला को दुखी देखकर उसके पुत्र पुरुरवा ने इसका कारण पूछा तो इला ने अपना परिचय देकर पुरुष से स्त्री बनने की सारी घटना बताई।

माता के दुःख निवारण का उपाय जानने के लिए पुरुरवा अपने पिता बुध के पास गए। तब बुध बोले- मै इला के स्त्री बनने की कथा भली-भांति जानता हूं। मैं यह भी जानता हूं कि भगवान शिव और देवी पार्वती के कृपा-प्रसाद से ही उनका उद्धार हो सकता है। इसलिए तुम गौतमी गंगा(गोदावरी) नदी के तट पर जाकर उनकी आराधना करो। भगवान शिव और पार्वती अवश्य तुम्हारी इच्छा पूर्ण करेंगे।

पिता की बात सुनकर पुरुरवा बड़े प्रसन्न हुए। वे उस समय माता-पिता को साथ लेकर गौतमी के तट पर गए और वहां स्नान कर भगवान की स्तुति करने लगे। उनकी स्तुति से प्रसन्न होकर भोलेनाथ साक्षात प्रकट हुए और उन्हें इच्छित वर मांगने को कहा।

पुरुरवा ने वर-स्वरूप इला को पुरुष बनाने की प्रार्थना की। भगवान शिव बोले- वत्स! इला के इस गौतमी गंगा में स्नान करने के बाद वह पुनः अपने वास्तविक रूप में आ जायेगी । यह कहकर भगवान् शिव अंतर्धान हो गए।

इला ने गौतमी गंगा में स्नान किया। स्नान के समय उनके शरीर से जो जल गिर रहा था वो इला का नारी सौंदर्य को गौतमी गंगा में घुल गया। तभी से वह स्थान इला तीर्थ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।



बुध व्रत कथा

समतापुर नगर में मधुसूदन नाम का एक व्यक्ति रहता था। उसका विवाह पास के ही बलरामपुर की संगीता से हुआ था, जो बेहद सुंदर और सुशील थी।

कुछ समय पश्चात संगीता अपने मायके आयी। और बुधवार के दिन मधुसूदन अपनी पत्नी को घर लाने के लिए अपने ससुराल पहुंचे और उसी दिन मायके से पत्नी को विदा करने की जिद पर अड़ गए। सभी ने मधुसूदन को बहुत समझाया कि बुधवार के दिन यात्रा न करे, लेकिन मधुसूधन मानने को तैयार ही नहीं थे। तब मधुसूधन की जिद्द के कारण संगीता के मायके वालों को उसे विदा करना पड़ा।


मायके से विदा होकर संगीता और मधुसूदन बैलगाड़ी में बैठकर घर की ओर जा रहे थे, तभी रास्ते में बैलगाड़ी का एक पहिया टूट गया, जिसके बाद दोनों को पैदल ही यात्रा करना पड़ी। इसी बीच संगीता को प्यास लगी तो मधुसूदन पानी लेने चला गया। जब मधुसूदन पानी लेकर वापस आया, तो उसने देखा की उसका ही एक हमशक्ल उसकी पत्नी के साथ बैठा है। मधुसूदन ने अपने हमशक्ल से पूछा कि वो कौन है? इस पर उसके हमशक्ल ने जवाब दिया कि वो तो मधुसूदन है और संगीता उसकी पत्नी है। तब मधुसूदन ने हमशक्ल से कहा कि वह झूठ बोल रहा है, वह थोड़ी देर पहले ही अपनी पत्नी के लिए पानी लेने गया था। तब हमशक्ल ने कहा कि वह तो पानी लाकर अपनी पत्नी को पिला भी दिया।


इस बीच मधुसूधन और हमशक्ल के बीच झगड़ा होने लगा कि आखिकार कौन है संगीता का असली पति है। तभी उस राज्य के राजा के सिपाही वहां आ गए। उन्होंने संगीता से पूछा कि उसका असली पति कौन है, तब संगीता ये जवाब नहीं दे पाई, क्योंकि वो खुद असमंजस में थी। इस पर सिपाहियों ने उनको राजा के दरबार में पेश किया। पूरी बात सुनने के बाद राजा ने दोनों को जेल में डालने का आदेश दिया। तब मधुसूदन घबरा गया और बुधदेव को याद कर क्षमा मांगने लगा। तब आकाशवाणी हुई कि- मधुसूदन! तुमने अपने ससुर और उनके परिवार की बात नहीं मानी, बुधवार को यात्रा की। यह सब भगवान बुधदेव के नाराज होने की वजह से हो रहा है।


भगवान बुधदेव की बातों को सुनकर मधुसूदन को अपनी गलती का एहसास हुआ। मधुसूदन ने कहा कि हे प्रभु! मुझसे बड़ी गलती हो गई है। अब से मैं कभी भी बुधवार को यात्रा नहीं करूंगा तथा हमेशा बुधवार का व्रत करूंगा। क्षमा मांगने पर बुधदेव शांत हो गए और मधुसूदन को क्षमा कर दिया। राजा के दरबार से मधुसूदन का हमशक्ल गायब हो गया। बुधदेव की कृपा से राजा ने मधुसूदन और संगीता को आज़ाद कर विदा कर दिया। वहां से जब वे आगे बढ़े, तो रास्ते में बैलगाड़ी भी सही सलामत हालत में मिल गई। जिससे वे दोनों समतापुर नगर में पहुंच गए। इसके बाद मधुसूदन हर बुधवार का व्रत रखने लगे, जिससे उनका जीवन सुखमय हो गया तथा उनके कामकाज में भी उन्नति होने लगी। 


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