माँ दुर्गा के कई स्वरूप है। इनके कुछ प्रमुख स्वरूप माता सती, माँ चामुंडा, माँ लक्ष्मी, माँ पार्वती एवं माँ काली है।
एक पुरुष का जीवन एक स्त्री के बिना अधूरा होता है। ब्रह्मा, विष्णु और महेश को सम्पूर्ण करती है माँ दुर्गा। इन्होने लक्ष्मी रूप में विष्णु तथा पार्वती रूप में शिव को सम्पूर्ण किया। माँ दुर्गा के अनेक रूप इस ब्रह्माण्ड को सम्पूर्ण बनाते है।
नवरात्र कथा
भारतवर्ष,
आदि काल में, वर्ष के चार ऋतुओं में, माता के नौ रुपों का पूजन नवरात्र के रूप में प्रचलित हुआ।
चार नवरात्रि में से सबसे ज्यादा प्रचलन नववर्ष के नवरात्रि (चैत्र माह) के वसंत नवरात्रि का हुआ।
कई वर्ष के बाद, त्रेता युग मे चैत्र मास की नवरात्रि के नवे दिन (चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को) भगवान श्रीराम का जन्म हुआ, जिसे रामनवमी के रूप में मनाया जाता है।
रामनवमी के दिन सरयू नदी में नहा कर भगवान श्रीराम का पूजन किया जाता है।
श्रीराम के जन्म का वर्णन
भये प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी।
हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी॥
लोचन अभिरामा तनु घनस्यामा निज आयुध भुज चारी।
भूषन वनमाला नयन बिसाला सोभासिन्धु खरारी॥
कह दुइ कर जोरी अस्तुति तोरी केहि बिधि करौं अनंता।
माया गुन ग्यानातीत अमाना वेद पुरान भनंता॥
करुना सुख सागर सब गुन आगर जेहि गावहिं श्रुति संता।
सो मम हित लागी जन अनुरागी भयउ प्रकट श्रीकंता॥
(रामचरितमानस- गोस्वामी तुलसीदास)
बाद में लंका युद्ध के दौरान, जब भगवान श्रीराम ने अश्विन माह में शरद नवरात्रि के दौरान माता के नौ रूपों का पूजन किया, तबसे शरद नवरात्रि का भी प्रचलन बढ़ गया।
चैत्र माह- वसंत नवरात्रि
आषाढ़ माह- गुप्त नवरात्रि
आश्विन माह- शरद नवरात्रि
माघ माह- गुप्त नवरात्रि
लंका युद्ध एवं नवरात्र
लंका युद्ध में ब्रह्माजी ने श्रीराम को चंडी(माँ दुर्गा) देवी का पूजन कर देवी को प्रसन्न करने का परामर्श दिया।
दिन के समय युद्ध तथा रात के समय यज्ञ की व्यवस्था की गयी। चंडी पूजन हेतु दुर्लभ एक सौ आठ नीलकमल की व्यवस्था की गई। वहीं दूसरी ओर रावण ने भी अमरता के लोभ में विजय कामना से चंडी पाठ प्रारंभ किया।
भगवान राम के पूजन में विध्न डालने की मंशा से एक नीलकमल रावण ने अपनी मायावी शक्ति से गायब कर दिया। जिससे भगवान राम का संकल्प टूटता-सा नजर आने लगा। हवन के दौरान एक नीलकमल की की कमी का पता चलने पर, भगवान राम को सहज ही स्मरण हुआ कि लोग उन्हें 'कमलनयन नवकंच लोचन' कहते हैं। तो हवन की पूर्ति हेतु एक नेत्र अर्पित करने की सोच के साथ जैसे ही प्रभु राम तूणीर से एक बाण निकालकर अपना नेत्र निकालने के लिए तैयार हुए, तब देवी प्रकट हुई और श्री राम का हाथ पकड़कर कहा- राम मैं प्रसन्न हूँ और विजयश्री का आशीर्वाद देती हूँ।
वहीं रावण के चंडी पाठ में यज्ञ में बालक का रूप धर कर हनुमानजी सेवा में जुट गए। निःस्वार्थ सेवा देखकर रावण ने हनुमानजी से वर माँगने को कहा। इस पर हनुमान ने विनम्रतापूर्वक कहा- प्रभु, आप प्रसन्न हैं तो जिस मंत्र से यज्ञ कर रहे हैं, उसका एक अक्षर मेरे कहने से बदल दीजिए। ब्राह्मण इस रहस्य को समझ नहीं सके और तथास्तु कह दिया।
तब हनुमान जी ने मंत्र में जयादेवी... भूर्तिहरिणी में 'ह' के स्थान पर 'क' उच्चारित करें, यही मेरी इच्छा है व्यक्त किया। भूर्तिहरिणी यानी कि प्राणियों की पीड़ा हरने वाली और 'करिणी' का अर्थ हो गया प्राणियों को पीड़ित करने वाली, जिससे देवी रुष्ट हो गईं और रावण का सर्वनाश कर दिया। हनुमानजी महाराज ने श्लोक में 'ह' की जगह 'क' करवाकर रावण के यज्ञ की दिशा ही बदल दी।
इस प्रकार नौ रात्रि के यग के बाद भगवान् श्रीराम ने दसवे दिन रावण का वध किया जिसे हम दशहरा के रूप में मनाते है।
माँ दुर्गा के नौ स्वरुप
नवरात्र की पूजा माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा से पूर्ण होती है तथा यह पूजा हर तरह की सुख समृद्धि एवं वैभव प्रदान करती है।
नौ रात्र - नौ स्वरुप
1. शैलपुत्री- माँ भगवती का स्वरूप जिसकी पूजा नवरात्र के पहले दिन होती हैं। शैलपुत्री सम्पूर्ण जड़ पदार्थ (पत्थर, मिट्टी, जल, वायु, अग्नि, आकाश) की प्रतिक है। इस पूजन का अर्थ है प्रत्येक जड़ पदार्थ में परमात्मा को अनुभव करना।(शरीर)
2. ब्रह्मचारिणी- जड़ में ज्ञान का प्रस्फुरण, चेतना का संचार भगवती के दूसरे रूप ब्रह्मचारिणी का प्रादुर्भाव है। जड़-चेतन का संयोग है। प्रत्येक अंकुरण में इसे देखा जा सकता हैं।(आत्मा)
3. चन्द्रघण्टा- भगवती का तीसरा रूप है। यहाँ जीव में वाणी प्रकट होती है जिसकी अंतिम परिणिति मनुष्य में बैखरी (वाणी) है।(बोलने की शक्ति)
4. कूष्माण्डा- अर्थात अण्डे को धारण करने वाली; स्त्री ओर पुरुष की गर्भधारण, गर्भाधान शक्ति है जो भगवती की ही शक्ति है, जिसे समस्त प्राणीमात्र में देखा जा सकता है।(मातृ-पितृ शक्ति- वंश को बढ़ाने वाली)
5. स्कन्दमाता- पुत्रवती माता-पिता का स्वरूप है। प्रत्येक पुत्रवान माता-पिता स्कन्दमाता के रूप हैं।(पुत्र की रक्षा)
6. कात्यायनी- कात्यायनी के रूप में वही भगवती कन्या की माता-पिता हैं। यह देवी का छठा स्वरुप है।(भयमुक्त एवं पाप से मुक्ति के लिए)
7. कालरात्रि- देवी भगवती का सातवां रूप है जिससे सब जड़ चेतन मृत्यु को प्राप्त होते हैं ओर मृत्यु के समय सब प्राणियों को इस स्वरूप का अनुभव होता है।भगवती के इन सात स्वरूपों के दर्शन सबको प्रत्यक्ष सुलभ होते हैं परन्तु आठवां ओर नौवां स्वरूप सुलभ नहीं है।(मृत्यु उपरांत आत्मा की शुद्धि)
8. महागौरी- भगवती का आठवाँ स्वरूप महागौरी गौर वर्ण का है।(सुहाग रक्षा)
9. सिद्धिदात्री- भगवती का नौंवा रूप सिद्धिदात्री है। यह ज्ञान अथवा बोध का प्रतीक है, जिसे जन्म जन्मान्तर की साधना से पाया जा सकता है। इसे प्राप्त कर साधक परम सिद्ध हो जाता है। इसलिए इसे सिद्धिदात्री कहा है। (कई जन्मो की सिद्धियां अर्जित करने की शक्ति)
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