उत्तर भारत में दीपावली को बड़े धूम धाम से 5 दिनों तक मनाया जाता है और हर एक दिन का एक अलग ही महत्व है।
पहला दिन- धनतेरस (यमराज, धन के देवता कुबेर और आयुर्वेदाचार्य धन्वंतरि की पूजा)
दूसरे दिन- नरक चतुर्दशी, छोटी दीपावली
तीसरा दिन- दीपावली (माँ लक्ष्मी की पूजा)
चौथे दिन- गोवर्धन पूजा
पांचवा दिन- भाई दूज (यम द्वितीया)
कैसे हुयी थी दीपावली पर्व मनाने की शरुवात?
सतयुग में जब देवता दुर्वासा ऋषि के श्राप से शक्तिहीन हो गये तो वो भगवान विष्णु के परामर्शानुसार दैत्यों के साथ समुद्र मंथन में जुट गए। जहाँ देवताओं की अगुवाई इन्द्र कर रहे थे, वही दैत्यों की अगुवाई प्रह्लाद पौत्र राजा बलि कर रहे थे।
समुद्र मंथन के अंतिम चरण में भगवान धन्वंतरि(आयुर्वेद के भगवान) अमृत कलश के साथ प्रकट हुए थे। (इस दिन को बाद में धनतेरस के रूप में मनाया जाने लगा तथा भारत सरकार ने इस दिन को राष्ट्रीय आयुर्वेदिक दिवस घोषित किया है)
अमृत के प्रकट होते ही शक्तिशाली दैत्यों ने अमृत भगवान धन्वंतरि के हाँथ से छीन लिया। परन्तु दैत्यों के अमृतपान करने से पहले भगवान विष्णु वहाँ पर मोहिनी रूप में प्रकट होकर छल से देवताओं को अमृतपान करा दिया। अमृतपान के पश्चात देवता अमर एवं शक्तिशाली हो गये।
इसके पश्चात दैत्यों के राजा बलि कड़ी तपस्या कर अमर देवताओं से भी ज्यादा शक्तिशाली हो गये और ऋषि शुक्राचार्य के संजीवनी मंत्र की मदद से तीनो लोको पर कब्ज़ा कर लिया। स्वर्गलोक हारने के पश्चात देवता भगवान विष्णु की शरण में गऐ।
देवताओं की मदद करने के लिये भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया और राजा बलि से दान में तीन पग जमीन मांगी। पहले पग में भगवान विष्णु ने सम्पूर्ण स्वर्गलोक नाप लिया तथा दूसरे पग में सम्पूर्ण पृथ्वीलोक नाप लिया। तीसरा पग रखने को जब जगह नहीं बची तो राजा बलि ने भगवान विष्णु का पैर अपने सर पर रखने को कहा।
भगवान विष्णु राजा बलि पर प्रसन्न होकर उन्हें पाताल का राजा बना देते है और राजा बलि वर मांगने को कहते है। तब राजा बलि ने कहा कि जब तक यह पृथ्वी है, तब तक आज से तीन दिन हर काल में यहाँ मेरा ही राज्य हो। इन तीन दिनों में जो मेरी पूजा करे, यमराज भी उसे त्राण न दे सकें। उस दिन चतुर्दशी तिथि थी। इस तरह दक्षिण भारत में राजा बलि की याद में नरक चौदस धूमधाम से मनाने का प्रचलन प्रारम्भ हुआ।
माना जाता है की इन तीन दिनों के लिए राजा बलि धरती पर अपनी प्रजा से मिलने आते है। और दक्षिण भारत में लोग इस दिन दिये जलाकर राजा बलि का अभिवादन करते है। इसलिए दक्षिण भारत में दीपावली 3 दिन की होती है। परन्तु केरल में लोग ओणम पर्व को राजा बलि के आगमन की तिथि मानते है और वो इसे ओणम पर्व के रूप में मनाते है। (केरल में दीपावली नहीं ओणम मनाया जाता है)
इस तरह से दीपावली पर्व की शुरुवात दक्षिण भारत से हुयी।
त्रेता युग में भगवान राम जब 14 वर्ष का वनवास पूर्ण कर अयोध्या वापस लौटे, तो अयोध्यावासी ने दीप प्रज्वलित कर भगवान राम का स्वागत किया। और इस प्रकार उत्तर भारत में दीपावली(तीसरा दिन) मनाने की परम्परा शुरू हुयी।
द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत अपनी ऊँगली पर उठाकर भारी वर्षा और बाढ़ के बीच लोगों को आश्रय प्रदान किया। जिसे हम गोवर्धन पूजा(चौथे दिन) के रूप में मानते है।
फिर जब श्रीकृष्ण यमुना किनारे अपनी बहन से मिलने आये तो उस दिन को हम भैया दूज(पाँचवा दिन) के रूप में मनाते है। हलाकि भैया दूज आदिकाल से मनाया जाता था पर इस दिन श्रीकृष्ण का अपनी बहन से मिलने पर इसका प्रचलन उत्तर भारत में काफी बढ़ गया।
आदिकाल में यमराज अपनी बहन यमुनाजी से मिलने के लिए उनके घर आए थे और यमुनाजी ने उन्हें प्रेमपूर्वक भोजन कराया एवं यह वचन लिया कि इस दिन हर साल वे अपनी बहन के घर भोजन के लिए पधारेंगे। यमराज जी ने यमुनाजी को वरदान दिया जो भी भैया दूज के दिन यमुना जी में स्नान करेगा वो आकाल मृत्यु और यम के भय से मुक्त हो जायेगा।
दीपावली का दूसरा दिन छोटी दीपवाली या नरक चतुर्दशी
(सतयुग में भगवान् विष्णु ने वरहा अवतार में पृथ्वी को बचाया था। वरहा भगवान और पृथ्वी के स्पर्श से नरकासुर का जनम हुआ था)नरकासुर भूमि माता का पुत्र था पर नरकासुर राक्षस की क्रूरता की कोई सीमा नहीं थी। महा बलशाली नरकासुर को यह वरदान मिला था कि उसे कोई स्त्री ही परास्त कर सकती है। इसी कारण देवता उसे परास्त नहीं कर पा रहे थे और उसने स्वर्ग पर भी अधिकार कर लिया था। नरकासुर ने 16 हज़ार युवतियों को बंधक बना रखा था। वह इन युवतियों की बली देकर अमरत्व प्राप्त करना चाहता था। इसीलिए श्री कृष्ण ने कार्तिक मास की चतुर्दशी को अपनी पत्नी सत्यभामा के नेतृत्व में नरकासुर से प्रचण्ड युद्ध किया और उसे मार कर सभी युवतियों को स्वतंत्र करवाया। बाद में इन 16 हज़ार युवतियों ने श्री कृष्ण को अपना पति मान लिया।
नरकासुर के नाम पर इस दिन को नरक चतुर्दशी कहते है। इस दिन श्री कृष्णा ने ना सिर्फ नरकासुर का वध किया बल्कि उसकी समस्त बुराइयों का नाश किया था। नरक चतुर्दशी के दिन दिया जलाने से बुराइयों का नाश होता है।
(नरकासुर का वध करने से पहले भगवान कृष्ण ने नरकासुर के मित्र मुरासुर नामक दैत्य का वध किया था जिसके बाद कृष्ण को मुरारी नाम से भी जाना जाने लगा)
इस तरह से भगवान् विष्णु के अलग अलग अवतारों की लीलाओं को उत्तर भारत में 5 दिनों तक दीपावली पर्व के रूप में मनाते है। वही दक्षिण भारत में इसे राजा बलि के सम्मान में मनाते है(ओणम या 3 दिनों की दीपावली)।
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