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Drone Regulation in India

Unmanned Aircraft System(UAS) also known as drone in layman terms. In India the regulation of Unmanned Aircraft System(UAS) is done on the basis of weight. Upto 500kg- Drone rules Greater than 500 kg- Aircraft rules On the basis of weight, drones were classified in following categories in India. Nano: Less than or equal to 250 grams Micro: From 250 grams to 2kg Small: From 2kg to 25kg Medium: From 25kg to 150kg Large: Greater than 150kg To operate drones in India, every drone needs an Unique Identity Number(UIN). This UIN was acquired by drone manufactures from GoI. So a buyer of a drone no need to worry about it. Digital sky platform - Green, Yellow and Red Zone ( https://digitalsky.dgca.gov.in/home ) Prior permission is required to fly a drone in the yellow zone(area around airport). Drones were not allowed to fly in red zone(airport area) No pilot license required for Nano drone and Micro drone(For personal use) No flight permissions would be required to fly upto 400 feet in g

बजरंग बाण

हनुमान चालीसा तथा बजरंग बाण की रचना तुलसीदास ने की थी।  हनुमान चालीसा- हनुमान जी का श्रीराम के प्रति समर्पण + भक्त की प्राथना  बजरंग बाण- हनुमान जी द्वारा लंका में कृत कार्य + बीज मंत्र + भक्त की प्राथना   ॥दोहा॥ निश्चय प्रेम प्रतीति ते, बिनय करैं सनमान। तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान॥ ॥चौपाई॥ जय हनुमंत संत हितकारी। सुन लीजै प्रभु अरज हमारी॥ 1 जन के काज बिलंब न कीजै। आतुर दौरि महा सुख दीजै॥ जैसे कूदि सिंधु महिपारा। सुरसा बदन पैठि बिस्तारा॥ आगे जाय लंकिनी रोका। मारेहु लात गई सुरलोका॥ जाय बिभीषन को सुख दीन्हा। सीता निरखि परमपद लीन्हा॥ बाग उजारि सिंधु महँ बोरा। अति आतुर जमकातर तोरा॥ अक्षय कुमार मारि संहारा। लूम लपेटि लंक को जारा॥ लाह समान लंक जरि गई। जय जय धुनि सुरपुर नभ भई॥ अब बिलंब केहि कारन स्वामी। कृपा करहु उर अंतरयामी॥ जय जय लखन प्रान के दाता। आतुर ह्वै दुख करहु निपाता॥ जै हनुमान जयति बल-सागर। सुर-समूह-समरथ भट-नागर॥ ॐ हनु हनु हनु हनुमंत हठीले। बैरिहि मारु बज्र की कीले॥ ॐ ह्नीं ह्नीं ह्नीं हनुमंत कपीसा। ॐ हुं हुं हुं हनु अरि उर सीसा॥ जय अंजनि कुमार बलवंता। शंकरसुवन बीर हनुम

मोक्षदा एकादशी

  जिन आत्माओं को भगवान विष्णु के निवास स्थान बैकुण्ड धाम में जगह मिलती है उन्हें मोक्ष मिल जाता है।  मार्गशीर्ष मास के शुक्लपक्ष की एकादशी को मोक्षदा एकादशी कहा जाता है। इसी दिन श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था, जिस वजह से इसे  गीता जयंती के नाम से भी जानते है।  ये एकादशी धनुर्मास एकादशी के नाम से भी जानी जाती है। धनुर्मास- वह सूर्यमास जब सूर्य धनु राशि में प्रवेश करता है।   मोक्षदा एकादशी व्रत कथा  चंपा नगरी में राजा वैखानस का राज था। नगर की जनता राजा से बहुत खुश थी। राजा अपनी जनता है पूरा ख्याल रखते थे। एक रात राजा ने सपने में देखा की उनके पूर्वज नरक की प्रताड़ना झेल रहे हैं। पितरों की यह स्थिति देखकर राजा बहुत दुखी हुए। सुबह होते ही उन्होंने राज्य के पुरोहित को बुलाकर पूर्वजों की मुक्ति का उपाय पूछा, तब ब्राह्मणों ने कहा कि इस समस्या का हल पर्वत ऋषि ही बता सकते हैं।  राजा वैखानस ब्राह्मणों की बात सुनते ही पर्वत ऋषि के आश्रम पहुंचे और नरक भोग रहे पितरों की मुक्ति का मार्ग जानने का आग्रह किया। ऋषि पर्वत ने बताया कि उनके पूर्वज ने अपने पिछले जन्म में एक पाप किया था, जिस कार

हिन्दू पञ्चाङ्ग

 हिन्दू पञ्चाङ्ग हिन्दू पञ्चाङ्ग में महीनों की गणना चंद्रमा की गति के अनुसार की जाती है। पूर्णिमा के दिन, चंद्रमा जिस नक्षत्र में होता है उसी आधार पर महीनों का नामकरण हुआ है। हिन्दू पञ्चाङ्ग में 30-30 दिनों के 12 मास होते है। हिन्दू पञ्चाङ्ग के 12 मास- 1.  चैत्र(मार्च-अप्रैल), 2.  वैशाख, 3. ज्येष्ठ, 4. आषाढ़, 5. श्रावण, 6. भाद्रपद, 7. आश्विन, 8. कार्तिक, 9. मार्गशीर्ष, 10. पौष, 11. माघ, 12. फाल्गुन चन्द्रमा की कलाओं के ज्यादा या कम होने के अनुसार ही महीने को दो पक्षों में बांटा गया है- (15 दिन)कृष्ण पक्ष और (15 दिन)शुक्ल पक्ष। पूर्णिमा से अमावस्या तक बीच के दिनों को कृष्णपक्ष कहा जाता है तथा अमावस्या से पूर्णिमा तक का समय शुक्लपक्ष कहलाता है। दोनों पक्षो की पौराणिक कथाएं- 1. कृष्णपक्ष(मास का प्रथम 15 दिन ) दक्ष प्रजापति ने अपनी सत्ताईस बेटियों का विवाह चंद्रमा से कर दिया। ये सत्ताईस बेटियां सत्ताईस नक्षत्र हैं। लेकिन चंद्र केवल रोहिणी से प्यार करते थे। ऐसे में बाकी पुत्रियों ने अपने पिता से शिकायत की कि चंद्र उनके साथ पति का कर्तव्य नहीं निभाते। दक्ष प्रजापति के डांटने के बाद भी चंद्र न

उत्पन्ना एकादशी

  उत्पन्ना एकादशी तिथि- मार्गशीर्ष मास, कृष्ण पक्ष, एकादशी   सतयुग में मुर नामक एक बलशाली राक्षस था। जिसने अपने पराक्रम से स्वर्ग तक को जीत लिया था। उसके पराक्रम के आगे इन्द्र देव, वायु देव और अग्नि देव भी नहीं टिक पाए। अतः उन सभी को स्वर्ग लोक छोड़ना पड़ा। निराश होकर देवराज इन्द्र कैलाश पर्वत पर जाकर भगवान शिव के समक्ष अपना दु:ख बताया। इन्द्र की प्रार्थना सुनकर भगवान शिव ने उन्हें भगवान विष्णु के पास जाने के लिए कहा। इसके बाद सभी देवगण क्षीरसागर पहुँचकर भगवान विष्णु से राक्षस मुर से अपनी रक्षा की प्रार्थना करते हैं। भगवान विष्णु सभी देवताओं को रक्षा का आश्वासन देते हैं।   इसके बाद भगवान विष्णु राक्षस मुर से युद्ध करने चले जाते हैं। कई सालों तक भगवान विष्णु और राक्षस मुर में युद्ध चलता है। लम्बे समय तक युद्ध लड़ने के कारण थकान से भगवान विष्णु को नींद आने लगती है और वो विश्राम करने के लिए एक गुफा में जाकर वहाँ सो जाते हैं। भगवान विष्णु के पीछे मुर दैत्य भी उस गुफा में पहुंच जाता है। भगवान विष्णु को सोता देख, राक्षस मुर उन पर आक्रमण कर देता है। उसी समय भगवान विष्णु के शरीर से एक देवी उत्पन्

बैकुंठ चतुर्दशी

  बैकुंठ चतुर्दशी - जब नारद ऋषि के आग्रह पर भगवान विष्णु ने बैकुंठ का द्वार एक दिन(कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी) के लिए आम जन मानस के लिए खोल दिया।  आज के दिन भगवान भगवान विष्णु और भगवान् शिव की पूजा एक साथ होती है।   चातुर्मास में भगवान विष्णु के योगनिद्रा में होने के कारण सृष्टि का कार्यभार भगवान शिव के पास होता है। इसके बाद देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु निद्रा से जागते हैं। तब चतुर्दशी के दिन बैकुंठ के द्वार खुलते हैं और भगवान शिव चतुर्दशी के दिन सृष्टि का कार्यभार पुन: विष्णुजी को सौंपने बैकुंठ जाते हैं।  इसलिए बैकुंठ चतुर्दशी के दिन भगवान शिव और भगवान विष्णु की पूजा एक साथ होती है।  बैकुंठ चतुर्दशी के ही दिन भगवान विष्णु ने भगवान शिव को 1000 कमल अर्पित किये थे, जिसके उपरान्त भगवान शिव प्रसन्न होकर भगवान विष्णु को सुदर्शन चक्र प्रदान किया था। इसलिए आज के दिन भगवान विष्णु को कमल चढ़ाते है। 

तुलसी विवाह

  देवी वृंदा भगवान विष्णु की अनन्य भक्त थी। उनका विवाह जलंधर नामक राक्षस से हुआ था। सभी उस राक्षस के अत्याचारों से त्रस्त आ गए थे। जब देवों और जलंधर के बीच युद्ध हुआ तो वृंदा अपने पति की रक्षा हेतु अनुष्ठान करने बैठ गई और संकल्प लिया कि जब तक उनके पति युद्ध से वापस नहीं आ जाते अनुष्ठान नहीं छोड़ेंगी। देवी वृंदा के सतीत्व के कारण जलंधर को मारना असंभव हो गया था। त्रस्त होकर सभी देव गण विष्णु जी के पास गए और उनसे सहायता मांगी। इसके बाद विष्णु जी जलंधर का रुप धारण करके वृंदा के समक्ष गए। नारायण को अपना पति समझकर वृंदा पूजा से उठ गई और उसका व्रत टूट गया। परिणाम स्वरुप युद्ध में जलंधर की मृत्यु हो गई और जलंधर का सिर महल में जाकर गिरा। यह देख वृंदा ने कहा कि जब मेरे स्वामी की मृत्यु हो गई है, तो फिर मेरे समक्ष कौन है। इसके बाद विष्णु जी अपने वास्तविक रूप में आ गए। जब वृंदा को सारी बात ज्ञात हुई तो उन्होंने विष्णु जी से कहा कि- हे नारायण मैंने जीवन भर आपकी भक्ति की है, फिर आपने मेरे साथ ऐसा छल क्यों किया? विष्णु जी के पास वृंदा के प्रश्नों का कोई उत्तर नहीं था। वे चुपचाप खड़े होकर सुनते रहे और